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पंचम परिच्छेद
[ ५-४ ]
[ वेश्या को निज रूप और वइरसेन को गत वस्तु-लाभ तथा राज-द्वार में हुआ हर्षोल्लास-वर्णन ]
मैंने ( वइरसेन ने ) विचारा - मुझे अवसर मिल गया है। जो अवसर पाकर कर्त्तव्य नहीं करता है, वह श्रेष्ठ मनुष्य जन्म को व्यर्थ खोता है | लोग ( उसे ) निश्चय से हीन और निकम्मा कहते हैं ||१२|| ( मैंने ) फूल सूँघाकर ( वेश्या को ) गधी के रूप में किया ( और ) यम के वेष में उसके ऊपर बैठा ||३|| वेश्या के कुटुम्बियों ने मुझे मारने को सेना सहित कोतवाल को बुलाया ॥४॥ | यह सुनकर मेरे पूज्य हे भाई! मेरे निमित्त से आप आये (और) मिले ||५|| ( मैंने ) तुम्हें वेश्या के अपने वैर को कहा | बताया है । हे राजन् ! जो जानें हमारा करो || ६ || ( राजा ने कहा ) – मेरे कहने से वेश्या को अभी मुक्त करो ( और ) जो ( उसने तुम्हारी ) वस्तुएँ ली हैं वे सुखपूर्वक ले लो ||७|| वइरसेन ने राजा के वचन स्वीकार किये । गुणों की श्रृंखला स्वरूप वइरसेन ने शत्रु ( वेश्या ) को नहीं मारा ||८|| ( वह ) दूसरे वृक्ष का फूल उस दुष्ट वेश्या को
घाता है । वह जिस रूप में पहले लोगों के द्वारा देखी गयी थी ( उस रूप में परिवर्तित ) हो गयी || ९ || कुमार ने आम्र फल और पावली दोनों वस्तुएँ माँगी ||१०|| ( उसने ) वे वस्तुएँ भयभीत होकर कुमार के हाथ में दे दीं। राजा और कुमार वहाँ हर्षित हुए || ११ || जय-जयकार हुआ, बहुत प्रकार के बाजे बजाये गये । मन आकर्षित करनेवाली विलासिनी स्त्रियाँ नृत्य करती हैं || १२ || राजा दान देते हुए जय-जय ध्वनि के बीच भाई के साथ चला ||१३|| वहाँ भाट विरुदावलियों कहते हैं, वणिक अपनी ओर से सुन्दर वस्तुएं भेंट में देते हैं ||१४|| क्रमानुसार चंदोवे बाँधे गये, राज-द्वार पर मंगलगीत गाये गये ||१५|| स्त्रियाँ बार-बार आशीष देती हैं। कि कुमार के साथ राजा की जय हो, आनन्दित रहें और वृद्ध हो ||१६|| महलों के अग्रभाग पर पाँच वर्ण की ध्वजाएँ स्थापित की गयीं । सुन्दर मणियों से निर्मित तोरण बाँधे गये ||१७||
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धत्ता - कुमार वइरसेन को युवराज पद दिया गया। इस अवसर पर राजा के कंचनपुर नगर में अनेक वाद्य ध्वनियाँ की गयीं। स्त्रियों ने मंगलगीत गाये और नृत्य किया ॥५-४॥
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