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________________ पंचम परिच्छेद [ ५-३ ] [ वइरसेन का अमरसेन से वेश्या के गधी होने का वृत्त-वर्णन ] इसके पश्चात् हे स्वामी ! वेश्या ने मुझे आकाशगामी पावली से समुद्र के बीच मदनदेव की मेरे अर्थ बोली गयी यात्रा के लिए कहा ||१-२॥ उसके कहने से मैं ( उसे ) मदनदेव के मन्दिर ले गया । मैंने वन्दना नहीं की। मेरी पावली लेकर और मुझे छोड़ करके वह (वेश्या) घर आ गयी ||३४|| वहाँ मेरा हितैषी ओर सुखकारी पूर्वभव का सम्बन्धी ( एक ) विद्याधर आया || ५ || प्राणियों के सुखकारी उस विद्याधर से अपने वैरी का मैंने पूर्ण वृत्त कहा || ६ || मैं देव मन्दिर पर्वत को देखने तथा जाने को रोका गया || ७ || मुझे पन्द्रह दिन को अवधि देकर ( विद्याधर ) चला गया । मैं कर्म से प्रेरित होकर वहाँ गया ||८|| वहाँ छोटे वृक्ष का फूल सूँघा । हे प्रभु! मैं शीघ्र गधा हो गया || ९ || वहाँ दिन पूर्ण होने पर विद्याधर आया । उसके द्वारा मैं गधे के रूप में देखा गया || १०|| वह मुझे दूसरे वृक्ष का फूल सुँघाता है । मेरा जो रूप था वह मैं पा जाता हूँ || ११ || मैंने विद्याधर के पास फूलों का रहस्य ज्ञात किया । इसके पश्चात् मैंने कहामुझे मेरे निवास पर भेजो ||१२|| मुझे पाँच दिन ( और ) रहने को कह - कर विद्याधर चला गया । कर्म-वश मैं देवालय में रहा || १३ | | उसी समय मैंने मन में विचार किया और दोनों वृक्षों के फूल तत्काल ले लिये ||१४|| विद्याधर से छिपाकर गाँठ में बाँध करके मैं सुन्दर और सुगन्धित ( वे फूल ) यहाँ ले आया || १५ || विद्याधर के द्वारा मैं यहाँ छोड़ दिया गया । इन्द्र के समान स्वेच्छानुसार ( मैंने ) नगर में भ्रमण किया || १६ | उस मायाविनी (वेश्या) के द्वारा मैं नगर में देखा गया । वेश्या ने अंगों में पट्टियाँ बाँध लीं ॥१७॥ हे प्रभु ! ( वह ) वैरिन वेश्या विद्याधर को कहकर मुझे अपने घर ले गयी || १८ || ( वहाँ कहने लगी ) - शुद्ध मति से देवता की आराधना करके मुझे कौन अनुपम वस्तु लाये हो कहो ||१९|| अपने मन से सुखपूर्वक हाथ में लेकर जो वृद्धा सूँघती है वह शीघ्र नव यौवन हो जाती है ||२०|| स्वामी मुझे दुःखहारी औषधि देकर और इस स्थान पर छोड़कर गये हैं || २१ || मेरे कहे वचन सुनकर वह क्रूर वृद्धा दासी मन में अति हर्षित हुई ||२२|| घत्ता - ( वेश्या ने कहा - ) दया करो और मुझे शीघ्र श्रेष्ठ तथा सुन्दर औषधि दो । मनुष्य, देव और नागेन्द्र के समान वर्ण-रूप-सौन्दर्य तथा रति की देह के समान मेरा शरीर करो ||५-३|| Jain Education International १८७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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