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________________ ॥४॥ अमरसेणचरिउ [५-३] पुणु पहु महु वेसहि । मइ साहिउ णह-गइ-पावलियहि ॥१॥ कंदप्पदेउ सायरहिं । जंपइ तुब अत्थें जाता तहिं ॥२॥ तं वयणे लइ हर्ष मण-गेहिं । गउ वंदिउ मह पावलिय लेवि ॥३॥ महुच्छंडि समाइय घरहं सा वि। तह सम्मायउ खगु इठु महु । पुटवह संबंधिउ दितु सुहु ॥५॥ सत्तुह सुहयालउ विज्ज णिहु । णिय वइयरु अक्खिउ ताई सहु ॥६॥ हउं वज्जिय सुर-गिर पिच्छ वाल । णउ गमहि अत्थु सुर-गिहर वाल ॥७॥ महु दिण पणरह दइ अवहि गउ । हउ कम्में पेरिउ तत्थ गउ ॥८॥ तहं भूरुह-सुघिउ फुल्लु लहु । भउ रासभु वेयं हउ जि पहु ॥९॥ तहं आयउ खेयरु पृण्ण दिणि । हउ दिट्टउ रासभु रुव तिणि ॥१०॥ अण्णहं तरु-फुल्ल सुधाइ महु । हउं जं रूवे वेएण पहु ॥११॥ मई फुल्त-भेउ लिउ खयर-पास । पुणु भणिउं पठावहु मज्झु वास ॥१२॥ रहु पंच दिणइ कहि गयउ मज्झु । हउ अच्छउ सुरगिहि कम्म-वसु ॥१३॥ तहि अवसरि चितिउ मणेण । लिय वे तरु-फुल्लई तक्खणेण ॥१४॥ णिय गंठि वंधि खेयर-पच्छण्ण । इह आणिय मई सु सुयंध वण्ण ॥१५॥ पुणु विज्जाहर हउं इत्थु मुक्कु । हंडउ पुर-सुच्छइ णाइ सक्कु ॥१६॥ सा पिच्छि वि हउ डंभहि[पुरेहि] । पट्टे वंधे लंजिय अंगिहि ॥१७॥ भणि वइयरु खयरहं वयणु महु । लइ गइय गेह विड-रमणि पहु ॥१८॥ कं लाउ अणुव्वम वत्थ कहु । मइ सुरु आराहिउ सुठ्ठ महु ॥१९॥ विद्धह णव जोवणु होइ लहु । जो सु घइ णिय मणि सुहु करि गहु ॥२९॥ गउ मुक्कि वि महु इह थाण भडु । दिण्णिय महु ओसहु दुट्टह हडु ॥२१॥ तु णिरंजिय वयण दासि मणि । महु अक्खिउ कूयर वुढि सुणि ॥२२॥ पत्ता महु वेयं देहि, दया करहिं, ___वर ओसहु देहि खण्णउ । महु रइ समु काया, करहि सु भाया, णर-सुर-णायखण्णउ ॥५-३॥ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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