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________________ चतुर्थ परिच्छेद १७७ ऐसा कहने के पश्चात् ( वेश्या द्वारा ) कुमार से पूछा गया अन्य अपूर्व क्या लाये हैं ? हे मेरे हृदय के लिए प्रिय ! वह मुझे शीघ्र कहो ! ऐसा सुनकर वह कहता है- तुम्हारे मन को प्रिय अपूर्व औषधि मुझे देव ने दी है वह सभी स्त्रियों में सर्वाधिक सुन्दर ( बना देती है ) ||१८-२०।। ( वेश्या कहती है - ) यदि यह ऐसा करती है तब शीघ्रता कीजिए । ( कुमार विचारता है ) - युक्ति पूर्वक हिंसाचार करूँ || २१ || पहले इसने निश्चय से मेरे पंखों का लुचन किया है मैं ( इसके ) शीश को मुड़वाता हूँ ||२२|| घता -- कामजयी कुमार ऐसा विचार कर वृद्धा वेश्या से कहता है - सुनो, यक्ष के द्वारा मुझे सुन्दर फूल दिये गये हैं । अपनी नासिका से स्त्री तत्काल घती है ॥४-११॥ [ ४-१२ ] [ वइरसेन द्वारा वेश्या का गधी बनाकर नगर भ्रमण कराना तथा वेश्या के परिजनों द्वारा विरोध-प्रदर्शन ] इनसे वृद्ध स्त्री नव-यौवनत्व को प्राप्त हो जाती है । वह स्वर्गं से उतरकर नीचे आई देव - अप्सरा के समान प्रतीत होती है ॥ १ ॥ उसके समान इन्द्र, फणीन्द्र, नरेन्द्र, कामदेव और यम की स्त्री भी दिखाई नहीं देती ||२|| कुमार के ऐसे वचन सुनकर ( वेश्या ) आनन्दित मन से कहती है - कुमार ! तत्काल मुझे औषधि दो || ३ || वेश्या की प्रार्थना सुनकर वीरों में वीर और धूर्तों में धूर्त प्रजापति राजपुत्र ( कहता है ) – हे मृगनयनी ! मैं तुम्हारे लिए ( ही ) लाया हूँ । हे चतुर स्त्री ! लो, शीघ्र फूल सूँघ ॥४-५॥ वह ( वेश्या ) उसे सूंघती है और शीघ्र गधी हो जाती है । खराब वचनों को कहता हुआ ( कुमार तब ) दण्ड लेकर उसे ( गधी को) रस्सी से बँधवाता है और सुखपूर्वक उसके ऊपर सवार होता है ।। ६-७।। लाठी से पीट-पीट कर घर से बाहर निकालता है और पीटते हुए सम्पूर्ण नगर में घुमाता है ||८|| वेश्या के परिजन और नगर के लोग देखते हैं ||९|| सभी पुरवासियों को भयभीत करती हुई पों-पों करती गधी घूमती है || १० || पल भर में अपनी माता है सुनकर कुन्दलता ( वेश्या की पुत्री ) देर करती हुई घर से बाहर नहीं निकली ॥ ११ ॥ ( वह कहती है — ) कुमार ने भला किया, मुझे अच्छा लगा, जो पापिनी ने किया वह ( उसने ) पाया ||१२|| ( जो ) जैसा करता है, वैसा ही वह पाता है, दूसरों को दुःख देनेवाले को दैव कष्ट देता है || १३ || ऐसा जानकर किसी का बुरा न १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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