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अमरसेगचरिउ यउ भणि वि कुमारहं पुणु वि पिट्ठ। अण्णइ अउव्व के लाय सुट्ठ ॥१८॥ तं कहहि वेइ महु हिपइ इछ । तं सुणि वि भणइं तव मणह इट्ट ॥१९॥ ओसहु अउव्वु मइ देव विष्णु । तं सयलु वि जुवइहि मणि रवण्णु ॥२०॥ जो करइ जस्स किज्जइ वि झत्ति । हिंसायारिहें किज्जह सजुत्ति ॥२१॥ पइ लुचाइय महु पंख णिरु । मई मुंडाविउ तुव सोसु वरु ॥२२॥
घत्ता यउ चिति कुमारु, णिज्जिय मारु,
वुढिय वेसहि भणई सुणि । जक्खे महु फुल्लई, विण्ण खण्णइं,
तिय सुघइ णिय घाण खणि ॥४-११॥
[ ४-१२]
तिय होइ विद्ध णव-जोव्वणाई। णं सुर-अच्छर अवयण्ण गाइं ॥१॥ तं समांण दीसइ कोइ नारि । णं सुखइ-फणि-णर-मयण-मारि ॥२॥ तं वयणु सुणे वि रंजिय मणेण । महु देहि कुमर ओसहु खणेण ॥३॥ तं णिसुणि पयंपइ णिवह पुत्तु । वीराण-वीरु धुत्ताण-धुत्तु ॥४॥ मइ तव कज्जे आणिय मियच्छि । लइ वेएं सुघहि फुल्ल दच्छि ॥५॥ तं सुघइ रासहि भइय वेइ । सा वयणे कुवरहं दंडु लेइ ॥६॥ दिण्णउ रज्जू बंधावि तहिं । तं उप्परि भउ असवार सुहि ॥७॥ जट्ठियह पीटि नीसरिउ गेहि । सहुं णयरु भमइ पिटुंतु तहि ॥८॥ पिच्छइ लंच्छिय-गणु लोय-पुरु। पउ-पउ करंति रासहि भमंति । पुरलोयहं सयलई भइय दित्ति ॥१०॥ णिय-माय दिलंवणु सुणि खणेहिं । णउ णिग्गय कुदलया सुमे॒हि ॥११॥ भल्लउ किउ कुमरें महु भायउ । जं किद्ध (ज्ज) उ पाविणि तं पाविउ ॥१२॥ जइसउ करइ सु तइसउ पावइ । पर-संताविय दय संतावइ ॥१३॥ इउ जाणि वि कहु वुरउ ण किज्जइ। तं पावें गरयहं संपज्जइ ॥१४॥
॥९॥
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