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________________ १७८ अमरसेणचरिउ इत्यंतरि लंजिय मारिज्जइ णारइय असेसह । पंच पयार सहइ वुह तं तहि ॥ १५ ॥ परिवारहं । पुक्कारिउ कोडवार सपासहं ॥ १६ ॥ सुण वीनई हमह दुहयारी । किय गद्दहि हम्माहि गरुन्यारी ॥१७॥ agats विडा फिर महि धुत्तउ । भंडइ पुरय-तियहि तुरंत ॥ १८ ॥ वेयं कारहु तं जि णिकिट्टउ । परएसिउ घर - परियण भट्टउ ॥ १९ ॥ तिणि वयणें कुल-वाल समुट्ठरं । वेढिउ चहुदिसु कुमरु तुरतई ॥२०॥ मरु-मरु मारु मारु पभणंतई । मुच-मुच रे! पाव तुरंतई ॥ २१ ॥ काइ विहिउ रे पाविय वेसह । किय रासह लंजिय थेरी तुहिं ॥२२॥ छंडहि जें रूवें करि रे णिग्घिण । णउ जम- कुहरि पडहि रे दुज्जण ॥२३॥ घत्ता तुहु जुज्जइ, एहउ किज्जइ, लंजिय रासहि कियइ तइ । तुहुं पाविउ, पर-संताविउ, Jain Education International कहि सिरु इव तु सयइ ॥४- १२॥ [ ४-१३ ] तं णिसुणि वि कुद्धउ राय- पुत्तु । लग्गउ कुल-वालहं णं कथंतु ॥ १ ॥ णिय जट्टिय मुक्किय विज्ज-सरि । तं फिरइ चक्क जि तिन्ह सिरि ||२|| ते मारिय सयलइ चडिय करि । कोलाहलु हूवउ सवल पुरि ||३|| के मारिय हुइ थरहरते । के सरणागय अरि-पय पडते ॥४॥ भोच्छंडि देव तुव करहि सेव । दइ जीवदाणु हम णिरुवमेव ॥ ५ ॥ के जाइ पुकारिय रायपास । भो महि परमेश्वर वइरि-तास ॥६॥ सुणि अम्ह वयणु तेयं दिणेस । इकु धुत्तु आउ तुह पुरह ईस ॥७॥ णं खइ कालु गिलण सह आयउ । मागंहि वेसहि भउ दुह वायउ ॥ ८॥ किय रासहि चडि पुरहं भनावइ । कोडवाल तुह सह संघाइ ॥९॥ पुरयणु णटुउ तासु भयालइ । सो हरि से बि भमिउं उम्मालई ॥१०॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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