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________________ चतुर्थ परिच्छेद १७३ लेकर पैदल उनसे मिलूँ || १५ || वेश्या के सम्बन्धियों द्वारा लाया गया राजा यदि उस वेश्या को छुड़ाता है, तो छोड़ ||१६|| घत्ता - कुमार ने भले दोनों वृक्षों के फूल अपनी गाँठ में छिपा लिये । पाँच दिन बीतने पर अवधि का स्मरण करके निश्चय विद्याधर वहाँ आया ||४-९॥ [ ४-१० ] [ वइरसेन का कंचनपुर नगरागमन एवं वेश्या का कुटिल वार्तालाप ] विद्याधर कुमार को लेकर कंचनपुर गया और उसने उसे उसके घर के द्वार पर स्थापित कर दिया || १ || इसके पश्चात् वैरियों को दुस्साध्य वइरसेन कंचनपुर नगर में घूमता है ||२|| वहाँ ( वह ) जब तक विविध सुख-सम्पत्ति का भोग-विलास करता है उसी समय किसी दूसरे दिन व्यभिचारियों की लुटेरिन वेश्या को वहाँ कुमार दिखाई दिया || ३ ४|| वह वहाँ एक क्षण मौन रही ( उसने मन में सोचा ) - समुद्र - लाँघकर यह यहाँ कैसे आया ? ||५|| उसने कपट पूर्वक वइरसेन से पूछा / कहा- मेरी पुत्री के जीवन हेतु घर आइये || ६ || इसके पश्चात् उस वेश्या ने कुमार के साथ कपट- रचना की । उस दुष्टा वेश्या ने जान बूझकर किवाड़ बन्द करके पुत्री से हाथ पकड़कर अपने सभी अंग बँधवाये || ७-८ || कुमार के पास बैठकर मदिरापान में आसक्त अति लोभिनी वह निज वृत्त कहती है || ९ || उसकी स्थिति को देखकर कुमार ने कहा- पट्टी किस कारण से बाँध है ||१०|| मेरे मन का संशय दूर करो और यदि वैरी जीवित हो तो मुझे कहो ॥ ११ ॥ वइरसेन का कथन सुनकर वेश्या कहती है-हे ( कुमार ) ! मेरे दुःखों को सुखपूर्वक सुनिये || १२ | | जब आप मदनदेव के मन्दिर में भक्तिपूर्वक देवता की वन्दना करने सहर्ष प्राप्त हुए / गये, इसी अन्तराल में एक विद्याधर आया और वह पापी तुम्हारी पावली तथा मुझे लेकर आकाश में दौड़ गया और दुर्लध्य समुद्र को पार करके मैं कंचनपुर में छोड़ी गयी ।। १३-१५।। कृत कर्मों से जीव कहाँ नहीं गया । वह निर्भय तुम्हारी पावली ले आकाश से चला गया || १६ || मेरे सभी अस्थि-बन्धन तोड़ डाले । हे भव्य ! इसी कारण कपड़ा ( पट्टी रूप में ) बाँध रखा है ||१७|| वेश्या के वचन सुनकर कुमार ने कहा- मुझे पावली का दुःख नहीं है ऐसा जानो ॥१८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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