SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७२ अमरसेणचरिउ तउ मुक्कउ जइ राउन्छुडावइ । वहु डिण कुट्टणि-जणवइ लावई ॥१६॥ घत्ता तं कुमरहं फुल्लई, वे तरु भल्लई, किय पच्छण्ण णिय गंठि फरि। दिण पंचई वित्तइं, खयरु णिरुत्तई, सम्मायउ किय अवहि-सरि ॥ ४-१ ॥ [४-१०] लिउ खेयर कंचणपुर-कुमारु । गउ थाइ वि खग्गु णिय-गिहरवारु ॥१॥ इत्थंतरि कंचणपुरह-मज्झि । वइसेणि भमइ वइरिय-दुसज्मि ॥२॥ तहं विविह विलासई करइ जाम । विलसइ सुहि संपइ विविह ताम॥३॥ अहिं दिणि थेरिहि लंजियाहिं । तहं हिठ्ठ-कुमरु विड-लुट्टियाहिं ॥४॥ अचुज्ज रहिय खण इक्कु तहिं । इहु किउ दधि लंघि वि आउ इहिं ॥५॥ तं वइयरु वुज्झउ कवडु करि । जिउ आवइ महु घर पुत्ति-सरि ॥६॥ पुणु किउच्छलु-मंडिउ कुमर-सहुँ । किय जाणु कवाटहं वीरवहु ॥७॥ वंधिय सव्वंग्गइ दुट्ठ णिरु । किय पुत्तिय सत्थहं गहि वि करु ॥८॥ थिय पास-कुमारह भणई वत्त । अइ-लोहणि मयण-पाण-सत्त ॥९॥ आकारु जोइ कुमरेहिं वुत्त । कहि कज्ज वद्ध पट्टिय णिरुत्त ॥१०॥ महु अक्खहि वइयरु जं जिवित्त । मण-संसउ फेडहि इव णिरुत्तु ॥११॥ तं वयणु सुणेविण लंजियाई । भोणिसुणि सुहव महु बहु दुहाई ॥१२॥ जव तुव कंदप्पह गेह-पत्तु । सुर-वंदण भत्तिहि रहसजुतु ॥१३॥ इत्थतरि खगवइ इक्कु आउ । तव पावलि लइ महु चलिउ पाउ॥१४॥ णह-धायउ सायरु-चइ दुसज्झु । हउ मुक्को कंचणपुरह मझु ॥१५॥ किय कम्में कहवण गयउ जीउ । तव पावलि लइ गउ णह अभीउ ॥१६॥ महु तुट्टेसह संधाण सव्व । तं कजें बंधे चोर भव्व ॥१७॥ सा वयणु सुणेविणु कुमरु जणि । महु पावलि दुक्ख ण अत्थि मुणि ॥१८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy