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________________ १६६ अमरसेणचरिउ पावलिय-मुक्क सुरपं गणेण । गउ पिच्छणत्थ पहु तक्खणेण ॥२४॥ घत्ता तहं विद्वहं वेसहं, उडिउ कुमरु तहं, चडि पावलियहं ण?-णहि । गईय पुत्ति-आवासहि, सुक्ख-णिवाहि, रहइ णिचितिय दुट्ठ सुहिं ॥४-६॥ [४-७] तहिं अवसरि कुमरहं मयणदेउ । णउ पणमि मिच्छइ कुगइ-हेउ ॥१॥ णिग्गउ गिह मज्झे कुमरु जाम । णउ जुवइ वेस-पावलिय ताम ॥२॥ चितइ कुमारु हउंच्छलिउं वेइ । अह वेसा-चरिउ ण मुणइ कोइ ॥३॥ णउ याणइ गुरु लहु मणुव लोइ । दव्वस्स विआयरु करइ सोइ ॥४॥ वेसा णरु गिण्हइ दव्व-सहिउ । णिय पुत्ति-णाहु अवरु वि विहिऊ ॥५॥ जो अत्थ-हीणु लहु सा चवेइ । णिस्सारइ करु गहि णिय गिहेइ ॥६॥ लोहंध दव्व अण्णण्ण लेइ । पइसारइ अण्णहं सण्ण देइ ॥७॥ यउ जाणि वि वेस ण होत्ति अप्पु । वज्जरइ जईसरु रहि पदप्पु ॥८॥ जो अण्णहं ईहइ पाव-भाउ । वंधण-ताडण-मारणहं पाउ ॥९॥ णउ जाइ अहणु जं कम्म किऊ । तं मत्थइ पडइ अचित धुऊ ॥१०॥ यउ चिति वि कुमरें णिय मणेण । सुहि रहइ सचितउ सुर-गिहेण ॥११॥ इत्थंतरि णहखगु एउ आउ । अवयष्णु सुर-गिह सुद्ध-भाउ ॥१२॥ तहं वंदिउ खेयर मयणदेउ । वसु दव्वहं अंचि वि करि वि थोउ ॥१३॥ पुणु दिट्ठउ खयरें वइरसेणि । कहु होतु समायउ भणिउ तेणि ॥१४॥ अच्छउ कंचणपुर गयणगामि । लंजियच्छलि लाइय इत्थु सामि ॥१५॥ कंदप्प-जाय-अत्थेण भए । पावलिय मज्झु णह-गयणदिए ॥१६॥ हउं वंचिउ लंजिय खड-णिकिट्ट । आयास-गमणि पावलिय इट्ठ ॥७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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