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चतुर्थ परिच्छेद
[ ४-६ ]
[ वेश्या की वइरसेन के साथ कपटपूर्ण कन्दर्प-थाण-यात्रा तथा वेश्या का पावली लेकर नगर आगमन वर्णन ]
हे दुष्टा ! मेरे नेत्रों के आगे से चली जा । हे लोभिनी ! तेरे माथे पर वज्रपात हो ॥१॥ पुत्री के ( ऐसे ) दुःखपूर्ण वचन सुनकर वृद्धा वेश्या को (वे) सुखकर नहीं लगे ||२|| बिलखती उस वेश्या स्त्री का मुख काला पड़ गया । वह बेचारी अपने मन में विचारती है || ३ || पुत्री ने ऐसा किया कि मेरी नहीं चलती है अतः अब उस कुमार को बलपूर्वक भेद डालकर भेदती हूँ || ४ || सौन्दर्य से स्त्री कामदेव को भी जीत लेती है । वह वृद्ध कुमार से कहती है ||५|| तुम हजारों का व्यापार नहीं करते फिर भी प्रतिदिन तुम्हारे पास धन दिखाई देता है || ६ || स्मरण करके मुझ मानिनी से सत्य कहो जिससे मेरे हृदय को बहु सुख होवे ||७|| कहा भी है
अबला स्त्री, पका हुआ अनाज, कृषि योग्य खेत, फलित वृक्ष ये चार तथा पाँचवाँ लक्ष्मी-समूह रक्षा करने योग्य होते हैं ॥ १ ॥
ऐसा सुनकर कुमार वृद्धा वेश्या से कहता है - निश्चय से मेरे पास आकाश-गामी पावली है || ८|| उनके प्रसूत तेज से क्षण भर में तीनों लोकों का भ्रमण करके सम्पत्ति ले आता हूँ ||९|| देव, मनुष्य और पृथिवी पर रहने वाले विविध प्रकार के असंख्य जीव दिखाई देते हैं ||१०|| (मेरे) आवागमन को कोई नहीं जानता है । पुण्य की हेतु बहु सम्पत्ति का उपभोग करता
॥११॥ उस कुमार से ऐसा सुनकर वेश्या छल करती है, ( वह कहती - कुमार ! ) मेरे मन के मनोरथ निःशेष हों ||१२|| हे कुमार सुनोमुझ पर दया करो, तुम्हारे जाने पर मैंने मनौती की थी कि यदि कुमार शीघ्र घर आ जाता है और मेरे चित्त की वेदना यदि शीघ्र दूर हो जाती है तो तुम्हारे साथ मैं कंदर्पदेव की यात्रा शीघ्र करूँ ॥ १३ - १५ ॥ ( मैं ) इस पर्व पर पूजन करूँ किन्तु शीघ्र जाना शक्य नहीं वह दुर्गम है ॥ १६ ॥ कामदेव का मन्दिर समुद्र के बीच में है । हे सुख निदान ! देव-वन्दना कैसे करूँ ||१७|| तुम्हारे चरणों की कृपा से देव को नमस्कार करूँ, दया करके यात्रा हेतु वहाँ ले चलो || १८ || ऐसा सुनकर कुमार ने वहाँ विचार किया- - इसे अभी समुद्र में फेकता हूँ || १९|| मेरे हृदय की शल्य शीघ्र चली जाती है । मैं गिराकर हृदय की शल्य मिटाता हूँ ||२०|| यदि समुद्र बीच मिथ्यात्वी देव है, तो गमनागमन नहीं है और जिनागम में कोई देव भेद नहीं सुना है ||२१|| अपने कार्य के लिए यदि ले जाती है तो लुटेरिन को वहीं छोडूं, वहीं मरे ||२२|| पावली के प्रभाव से वृद्धा दासी
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