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अमरसेणचरिउ
थिर होइ कित्ति थिर-कम्म धुवे । थिर भव्वु-अभव्वु वि जीउ भवे ॥१॥ थिरुदाणु-सुपत्तहं भव्व-दिए । थिर सत्तुह-मित्ती भाय किए ॥२॥ पुणु एवहि लंजिय लइउ भेउ । मंडे वि कवडु णिय-कज्ज-हेउ ॥३॥ इउ चितिउ मारह-हरखचित्तु । सुहि अच्छहि वेसहिं गेहि धुत्तु ॥४॥ कइहव दिण वित्तई लंजियाहिं । अक्खिउ णिय पुत्तिहि समउ ताहि ॥५॥ लहु वुज्झहि पुत्तिय विडु विणाहु । कह तुव पहि संपइ णइ-पवाहु ॥६॥ कछिज्जइ विडयणु णिय घरेहिं । लिज्जइ तं संपइ करिच्छतेहिं ॥७॥ जहं देसहं णिव-त्तित्तिण पुज्जइ । जहं रोडयाहं णउ गिद्ध उपज्जइ ॥८॥ जहं हुयासु पुर-वण णउच्छंडइ । जहं पइव्व णिय सोलु ण खंडइ ॥९॥ जहं सायरु वहु णइहि ण तिप्पइ । जहं जइवरु कम्मह गणु कप्पइ ॥१०॥ जहं हरि जुइ-जिण-तित्तिण तिप्पइ । तह हमि पुत्ति विड-धण ण तिप्पइ।११ ववसायहं विणु णउ होइ लच्छि। यह अणुदिणु विलसइ दाण सुच्छि ॥१२॥ तं णिसुणि वि कुदलयाई वुत्तु । सइ-खंड-जीह तुव होइ तत्तु ॥१३॥ जं जंपहि एहउ वयणु दुट्टि । पुणु लग्गिय पाविणि एह पुट्ठि ॥१४॥ पइं लियउ एह सहकार-फलु । तं सुज्जगामि णि हि देइ णिलु ॥१५॥ इव दिणि-दिणि इह णरु अम्ह घरि । अप्पइ बहु संपइ विविह परि ॥१६॥
घत्ता
इसु वुरउ ण किज्जइ, वहु सुहु दिज्जइ,
इह सरि वीउ ण अत्थि णरु। यहु महु मण वल्लहु, पउमिणि दुल्लहु,
णउच्छंडउ खण इक्कु लहु ॥४-५॥
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