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________________ चतुर्थ परिच्छेद १६१ [४-४] [ वइरसेन के वियोग में वेश्या-पुत्री की स्थिति, पश्चाताप, वहरसेन का वेश्या के घर पुनरागमन एवं अपने खोये आम्र __ फल की प्राप्ति का चिन्तन ] वह वृद्धा वेश्या वइरसेन जहाँ था उस स्थान गयी। वह अमृत तुल्य वचनों से कहती है-हे वइरसेन ! सुनो ॥१॥ मेरी मागधी पुत्री तुम्हारे वियोग के शोक से सफेद वस्त्र पहिनती है ।।२।। अपनी चोटी एवं केशों को खोल रखा है, न नहाती है, न खाती है । प्रिय वेष-भूषा रहित है ॥३॥ जब से आपका वियोग हुआ है तब से यह बोलती ( भी ) नहीं है (केवल) नेत्रों से निहारती है ।।४।। हे मेरे पुत्र ! तुम्हारे विरह से चारपाई (खाट) की पाटी लेकर सोयी है ।।५।। हे कुमार ! प्राण निकल कर जाने के पहले शीघ्र पहुँचकर उद्धार करो ॥६।। ऐसा सुनकर वइरसेन वहाँ गया जहाँ पाप की खदान उस कूटिनी वेश्या की पुत्री ( थी ) ॥७॥ किवाड़ से वह वेश्या की पुत्री कहती है हे कुमार सुनो-मुझ पापिनी ने ( इस ) तरह बुरा किया जो कि चन्द्र के समान मुखवाले तुझे निकाला। हे देव ! आप मेरा अपराध क्षमा करो ।।८-९|| मुझ दुर्मति के द्वारा जो कर्म किये गये वे यहीं मेरे माथे पड़े ॥१०।। तुम्हें दुःखाकर मेरी पुत्री इस स्थिति में आ गयी है कि वह रात-दिन रोती है ॥११॥ यह बालिका शरीर का शृङ्गार नहीं करती, न लम्बे बालों की चोटी बांधती है ।।१२। कहा भी हैकौसंभ-रेशमी वस्त्र, काजल, काम ( रति क्रिया), कर्ण-कुण्डल और कार्मुक-कार्य करने के योग्य-ये पाँच ककार पति-विहीन स्त्रियों के दुर्लभ होते हैं ।।१।। ऐसा सुनकर कुमार ने मन से विचारा कि यह पापिनी मुझे अब पुनः कैसे छलती है/छल सकती है ।।१३।। डब-डबाये नेत्रों से यह बहत दम्भ करती है । इसी के द्वारा मेरी हृदय प्रिय वस्तु छली गयी है ।।१४।। इसी ने आम्र-फल का भेद लेकर मुझे हाथ पकड़कर अपने घर से निकाला है ॥१५॥ घत्ता-अब उसे इसका फल चखाता हूँ। वाक् संयम से आविद्ध करके सभी का प्रतिकार लेता हूँ। यत्न और उपाय करके छल बल पूर्वक मेरे लिए हुए आम्रफल को इससे शीघ्र ले लेता हूँ।।४-४।। ११ Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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