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________________ १४१ तृतीय परिच्छेद प्रकार साला मीठा है ॥२॥ राजा के इस वचन से राक्षस संतुष्ट हुआ। संतुष्ट होकर वह धूर्त राजा को अपने आवास में ले गया ॥ ३ ।। उसने दिव्य वस्त्र पहिनाये और सोलह शृंगार कराये ।। ४ ।। सुख की स्थान, अनुपम रूपवान् सोलह दायीं ओर और सोलह बायीं ओर स्त्रियाँ ( दी) ।। ५ ।। जो जो ( तुम्हारा ) प्रीतम है वह मुझे अधिक प्रिय है। उसको अपने मन में जैसी विभूति भाती है, जो मीठा लगता है वह ( मुझे ) मन में मीठा है । हितकारी है। इस प्रकार वृद्धा वेश्या ने भली प्रकार कहा ।। ६-७ ।। इस प्रकार माता मागधी के वचन सुनकर दूसरे दिन कुन्दलता ने विचार करके रति-सुख के समय वइरसेन से पूछा-हे प्रीतम ! (मेरी) बात सुनो ! बिना व्यापार के द्रव्य नहीं होता है (अतः ) अपनी लक्ष्मी का कोई उपाय बताओ / कहो ॥ ८-१० ॥ मूर्ख वइरसेन कपट-भेद नहीं लाया। असह्य कष्ट से जिससे ( वह लक्ष्मी) प्राप्त की जाती है सरल परिणामी वइरसेन ने वह आम्रफल का सम्पूर्ण भेद सुखपूर्वक उस वेश्या ( कुन्दलता ) से कहा ॥११-१२॥ वह कुन्दलता उस भेद को लेकर मिथ्या वचनों की भंडार अपनी माता के पास विहँसते हुए आकर उस वृद्धा मागधी को निश्चयपूर्वक कहती है--उस वइरसेन ने मुझसे हैरानी दूर करने वाला भेद प्रकट कर दिया है ॥ १३-१४ ॥ उसका कथन सुनकर धिक्कार हो उस लोभिनी वृद्धा ( मागधी ) ने उत्तर दिया-द्रव्य लेकर मन के अनुसार हिस्से बनाकर दो ।। १५ ।। उसने बटवारा करके भोजन के बीच दे दिया और अपना हिस्सा छिपकर ले लिया। इसे वइरसेन नहीं जान पाता है ।। १६ ॥ भोजन के समय राजकुमार वइरसेन ने कष्ट देनेवालों को भोजन कराया ॥ १७ ।। इसके पश्चात् निर्वल वह शीघ्र वन गया किन्तु कामदेव की मूर्ति सहारा नहीं देती है ॥ १८ ॥ घत्ता-शत्रुओं का क्षय करने में काल स्वरूप द्रोही कुमार वइरसेन वमन करता है। द्रव्य की लोभी ( वमन लेकर ) वेश्या माता उस स्थान गयी ( किन्तु ) वहाँ से पक्षी उड़ गये थे ॥ ३-६ ।। [३-७] [ वइरसेन का वेश्या के घर से निकाला जाना तथा स्त्री को गुप्त भेद देने पर किया गया पश्चाताप वर्णन] उस स्थान पर दरिद्रता-नाशक आम्र-फलों से ऊजड़ दिखाई दिए ॥१॥ वह मागधी वेश्या वमन की थाली लेकर घर के बाहर ले जाकर वमन में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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