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________________ १४० अमरसेणचरिउ तं वयणें रक्खसु संतुदुउ । णिउ णिय आवासहि विधुत सतुट्ठउ ॥३॥ वंधाविय ॥४॥ सुहु-धामहं ॥ ५ ॥ मणि-विभूइ ॥ ६ ॥ देवंगईं वत्थई पहिराविय । सोलह आहारणई सोलह दाहिण सोलह वामई । अणुवम रूव तिया जं जं पिउ महु सहु अइव पोइ । तं जसु भावइ णिय जं मिट्ठउ तं मणि हियइ मिट्ठू । यउ विद्धह लंज्जिय भणिउ सुट्टु ॥७॥ इय मागह मायह वयणु सुणि । अवरहि दिणि कुंदलयाई मुणि ॥८॥ वुज्झिउ रइ सुक्खड़ वइरसेणि । भो वल्लह इह पुणु वयणु सुणि ॥९॥ विणु ववसायहं णउ अत्थ होइ | साहहि णिय लच्छिउवाय कोइ ॥ १०॥ उ आणि मुक्खहं कवडु-भेउ । जि संपज्जइ अइ दुसह सोउ ॥ ११ ॥ तं सरलचित्त सहयार भेउ । अक्खियउ सयलु लंजिय सुहेउ ॥ १२ ॥ तं लेवि गुज्झ णिय माय - पासि । वियसंति समाइय अलियरासि || १३ || तहं जंपइ मागह विद्ध णिरु । महु भेउ पयासिउ रोडहरु ॥१४॥ तहं सुणिउ भउ धिय उत्तु विद्ध । मणह लई वंटि दिय दव्व लुद्ध ॥ १५ ॥ वंटिवि तं भोयण - मज्झि दिपण । घिय पच्छण्णइ णउ मुणइ तंण ॥१६॥ भोयणहं वेर वइसेण राउ | भोयण भुंज्जाविउ रोड दाउ ॥ १७॥ कर-मलि उ वंणी तत्थ झत्थि । णउ साहारइ कंदप्प- मुत्ति ॥ १८ ॥ 1 घत्ता वइसेण कुमार, अरिखय- कालु, च्छिद्दि करेइ दुहिलउ । माइ वेसहि, लुभिय-दव्वहि, उडि उ थाडह वउणु तउ ॥३-६ ॥ [ ३-७ ] तं थाड मज्झि सहकार - फलु । दिट्ठोसि वि उज्जडु रोडहलु ॥ १ ॥ यि घर वाहिर थालु लेवि । पुणुच्छिद्दि- मज्झि लइ धुवइ तोवि ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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