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तृतीय परिच्छेद
१३९ चरणो की भक्त, मृग-नयनी देवश्री उसकी रानी ( थी ) ॥ ३ ॥ वहाँ देखने में अरुचिकर, सम्पूर्ण शरीर से भयंकर, पापी एक राक्षस रहता है ॥ ४ ॥ वह दुष्ट नृपति के आगे कहता है-हे राजन् ! भली प्रकार कहो ! सुन्दर क्या है ? ॥ ५ ॥ ( राजा उत्तर देते हुए कहता है )-जीवों को जो भोजन के साथ पथिवी पर प्रिय है जिसके बिना लोक का सब कड़वा प्रतीत होता है।। ६ ।। ऐसा सुनकर राक्षस के द्वारा वह मारा गया। उस राजसिंहासन पर नया राजा सुखपूर्वक बैठा ।। ७ ।। छह माह पश्चात् पापी, देखने में खराब, भयंकर, काली देहवाला, पर्वत की गुहा के समान मह फाड़े हुए, उठे हुए बालों वाला, गुजाफल के समान लाल नेत्रवाला, यम के वेष में वह पूनः आया ॥ ८-९ ॥ उसने राजा से कहा-शीघ्र बताओ! इस लोक में सुन्दर क्या दिखाई देता है ? ॥ १० ॥ स्त्री-सुख से राजा कहता है-रति-सुख । इसे राक्षस ने तत्काल मार डाला ।। ११ ।। इस प्रकार पापी, निर्दयी राक्षस के द्वारा बहुत राजा मारे गये ।। १२ ॥ राक्षस का भय मानकर हृदय में शल्य होने से कोई नया राजसिंहासन पर नहीं बैठता है।। १३ ॥ कहा भी है-पथिक के समान बढ़ापा, दरिद्रता के समान पराभव, मरण-भय के समान अज्ञान और भूख की वेदना के समान अन्य कोई वेदना नहीं है ।। १४ । इसी बीच मंत्रियों ने शीघ्रता से मंत्रणा की और नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो सुभट आकर राज के सिंहासन पर बैठेगा उसे राज-पद दिये जाने का वचन दिया जाता है ।। १५ ।। महल के साथ राजा उसके चरणों को सेवा करेंगे। वह निःशल्य होकर पृथिवी का भोग करे ।। १६ ।। घोषणा सुनकर धुत्ताणधुत्त नामक एक स्थिर पुरुष आकर राजा के सिंहासन पर बैठ गया। बड़े-बड़े मंत्रियों ने भलो प्रकार राजा की वन्दना को ।। १७-१८ ॥
घत्ता-जिनेन्द्र के चरणों के भक्त राजा नियमानुसार अपनी प्रजा का सुखपूर्वक राज्य करते हुए पालन करता है। छह मास पश्चात् राक्षस ने आकर कहा-राजन् कहो! निश्चय से मीठा क्या है ? ॥ ३-५ ॥
[३-६ ] [ कुन्दलता का वइरसेन से उसके धनोत्पादन का रहस्य ज्ञात करके
माता से प्रकट करना तथा द्रव्य-विभाजन कथन-वर्णन ]
राक्षस का प्रश्न सुनकर राजा संतुष्ट हुआ। वह राक्षस के आगे हृदय में स्थित (विचार ) प्रकट करता है | कहता है ॥ १॥ जो जिसका अधिक सुखकारी होता है, उसको वह मीठा है ( अतः ) निश्चय से भली
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