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________________ तृतीय परिच्छेद १३५ [३-३ ] [ वइरसेन का कंचनपुर में प्रच्छन्न वेष में रहना तथा दीन-वचन सम्बन्धी विचार-वर्णन] भक्त जन विविध प्रकार से जय-जय शब्द और स्तुति करते हैं। भाट विरुदावलियाँ कहते हैं ।। १ ।। बहुत प्रकार के बाजे बजाये जाते हैं, विभिन्न स्वर होते हैं, स्त्रियाँ अमत के समान मीठी वाणी से मंगल गीत गाती हैं ॥ २ ॥ बहुत उत्सव पूर्वक राजा अमरसेन को कंचनपुर-नरेश के सिंहासन पर अमृतोपम वाणी से बैठाया ॥ ३ ॥ अपने भाई से रहित वह सुखपूर्वक राज्य करता है। भोजन के लिए गया भाई उसे शीघ्र नहीं मिला ॥ ४ ॥ राजा के मन में उत्तरोत्तर चिन्ता बढ़ती है। उसने अपने नगर और वन में ढुंढवाया ॥५॥ राजा को प्राण-प्रिय भाई दिखाई नहीं दिया । वह सचित राज्य सिंहासन पर बैठा रहता है ।।६।। इसी बीच उसी कंचनपुर में वइरसेन छिपकर रहता है ।। ७ ॥ वह सुखपूर्वक सम्पदा और गम्भोर निधि को भोगता है। पुरजन और राजा जान नहीं पाते हैं |८|| वइरसेन ने राज्य सिंहासन पर अपने हितैषी बड़े भाई को बैठा जानकर हृदय में विचार किया । ९ ।। मैं शीघ्र राजमहल नहीं जाऊँ, उनके आगे यह कहना भी युक्त नहीं है कि हे राजन् मैं तुम्हारा ( भाई ) लगता हूँ अतः मुझे गाँव, नगर और राजकोष दो ।। १०-११॥ हे राजन् ! मैं तुम्हारा सहोदर छोटा भाई हैं। हे चरित्रवान् भाई ! मेरे ऊपर दया करो ।। १२॥ वन में हाथी, सिंह और सौ की सेवा करना अच्छा है, वृक्षों के पत्ते और कन्दमूल खा लेना अच्छा है, तृणशय्या अच्छी है, शरीर पर वृक्ष की छाल पहिनना अच्छा है किन्तु दोनता भरे वचन नहीं बोले ।। १३-१४ ।। पुरुषार्थी को यह युक्त नहीं। पृथिवी पर भाई का धनहीन होना ठीक नहीं है ।। १५ ।। पृथिवी पर सज्जन यदि अर्थ-विहीन है तो वह जंगल में भले रह लेता है किन्तु पृथिवी पर लोभाकृष्ट होकर दीनता भरी वाणी नहीं बोलता है ॥ १६-१७ ।। ( जो ) महामतिमान् मान रहित होकर स्वाभिमान की रक्षा करता है ( वह ) निश्चय से हाथी पर असवार होता है। घत्ता-लक्ष्मी से अभिमान में रहकर मन में कुटिलता धारण करके वइरसेन वहाँ मागध वैश्य के घर उसकी पुत्री कामकंदला के नेत्रों से आविद्ध हो गया ॥ ३-३ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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