SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३६ अमरसेणचरिउ [३-४] तं अच्छइ-लंजिय लुद्धगेहिं । सुज्जोदयच्छिद्दि करेइ सोहि ॥१॥ रयण सय-पंच खंण्ण पहिं । फल सहकारह भावेण गुर्णाहं ॥२॥ सई इच्छइ भुजइ कुमरु दव्वु । भंजेइ दलिदह रोडु तिव्वु ॥३॥ पुणु पुणु तहं राय ढुढावियाउ । णउ पायउ सोयरु मयण राउ ॥४॥ वइसेणु वि पुर महि जुउ रमई । सुह सुर कीलई वेसा समेइ ॥५॥ गय वहु दिणाई लंजियहि विद्ध । णिय पुत्तिय पुच्छिय दव्व लद्ध ॥६॥ सुय वुज्झहि विरु भत्तारु भेउ । विणु विवहारे दव्वु चि अमेउ ॥७॥ विलसइ रइ माणइं णिच्च पुत्ति । इहु मारि वि लिज्जइ विणय जुत्ति ॥८ तं सुणि वि भणइ पुत्ती सुवाय । णउ वित्त-तित्ति तुज्झु वि सुमाय ॥९॥ अवराहें विणु वहणउ ण जुत्तु । हरि-धणु आणइ इह अप्प मित्तु ॥१०॥ सुणि पुत्तिय-वयण लोहेण भुत्त । ण वि गाहु मुयइ पावेण लित्त ॥११॥ णिय-धूयस रिस वोलेइ वयण । णउ एह सरिसु हुउ संगु केण ॥१२॥ तं रयणु वि हत्थं-तरि वि लाइ । हिय दाहु देवि अइरेण जाइ ॥१३॥ हत्थि चडइ ण वि पुणु पुणु जूरइ । पाणि-मलइ सो हियइ विसूरइ ॥१४॥ पत्ता पुणु भासइ कुट्टणि, विडयण-लुट्टणि, पुत्ति सुणहि एयग्ग मण। दिटुंतु विसालउ, जण-मण-हारउ, दिवपुरि गामें णयरि घणा ॥३-४॥ [ ३-५] धण-कण-संपुएणी सुह-णिहाणि । देवह सुहयारी विवुह खाणि ॥१॥ तहं देवदत्तु गरवइ पयंडु । अरियण-गइ-दलण-मियंदु-चंडु ॥२॥ तं राणी देवसिरि मियक्खि । जिण-गुरु-पय-भत्तिय णाण दक्खि ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy