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________________ १३४ अमरसेणचरिउ [३-३] तह जय-जय सद्दइ विविह थुत्त । विरदावलि भट्ट भणंति भत्त॥१॥ वहु वायई वहि विविह णाय । तिय मंगल गावहि अमियवाय ॥२॥ वहु उच्छवेण णिउ णिवह थाणि । णिव-पट्टह थप्पिउ अमियवाणि ॥३॥ सुहि करइ रज्जु णिय बंधु रहिउ । णउ मिलिउ वेइ असणत्थ गउ ॥४॥ तं चित पवढई रायमणि । ढुढाविउ णिय पुरु रण्णु खणि ॥५॥ णउ दिट्ठउ बंधउ पाण-इछ । पहु रहइ सचितउ रज्ज-विठु ॥६॥ इत्थंतरि कंचणपुरह मज्झि । वइरसेणु पच्छण्णउ रहइ तज्झि ॥७॥ णउ याणइ पुरयणु रायवीरु । विलसइ सुहि संपइ णिहि-गहीरु ॥८॥ गुरु भायरु जाणि वि रज्ज विठ्ठ। वइसेणि चितिउ हिय-मणि? ॥९॥ हउं णिव मंदिरि णउ जाउ भत्ति। तं अग्गइ भणउ ण ऐह जुत्ति ॥१०॥ हउं तुम्ह केर लग्गउ महेस । महु देहि राय पुर-णयर-कोस ॥११॥ हउ तुज्झु सहोयरु लहुवराय । दय करहि महुप्परि सुद्धभाय ॥१२॥ वरि वणि गय-सीह-णाय सेविहिं । दुम-पत्तई कंदइ-भक्खिजहि ॥१३॥ तिण-सज्जा णउ दीणु वइज्जइ । वरि तणु रुक्खच्छित्तु पहिरिज्जइ ॥१४॥ सपुरिसाहं गउ एहउ जुज्जइं। णउ धणहीणु बंधु महि जुज्जइ ॥१५॥ जइ सज्जणु अत्थ-विहीणु भुवि । सेवेइ रण्णु णउ भणइं भुवि ॥१६॥ दोणक्खरु भणई ण लोय छावि । आरहइ महामइ माण-गए । णउ विक्कइ माणु गयंद-धुए ॥१८॥ ॥१७॥ घत्ता अहिमाणे थक्कउ, मणु करि वंकउ, वइरसेणि वर लििहं। गिह मागह-वेसहि, विद्ध सुदुट्टिहिं कामकंदला-पुत्ति तहि ॥३-३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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