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________________ तृतीय परिच्छेद १३३ [३-२] [ अमरसेन को कंचनपुर का राज्य-प्राप्ति-वर्णन ] इसी बीच कंचनपुर का राजा हैजे की बीमारी से शीघ्र मर गया॥१॥ पुत्रहीन होने से उसका राज्य निष्फल गया, उस राज्य को कोई उद्धारक प्राप्त नहीं हुआ।।२।। उस राजा के गोत्र में (जो) भाई लगते हैं (व) परस्पर में दुराशयी और मूर्ख हैं ॥३॥ मंत्री भली भाँति सभी को मत झगड़ो कहकर और रोककर (समझाते हैं कि) संसार मिथ्या है, निरर्थक है ॥४॥ हाथी जिसे राजपट्ट देवे वही इस नगर का भली भाँति राज्य करे ।।५।। ऐसा सुनकर सभी ने मंत्रियों की बात मान ली। सुन्दर हाथी सजाया गया ॥६॥ उसकी संड पर मणि जटित, सूर्य के समान दीप्तिमान् पुण्यकलश देकर उसे घुमाया गया ।।७।। हाथी ने सँड ऊँची करके (पुण्य-कलश) लिया और कंचनपुर के सभी घर घूमा ।।८। वह किसी के सिर पर कलश नहीं ढोरता है । ठोक ही है-लक्ष्मी हीन पुरुषों के घर प्रवेश नहीं करती है ।।९।। उस हाथी ने मत राजा के सभी पुरजनों में किसी भी मनुष्य को राजा नहीं माना ।।१०|| नगर से बाहर निकलकर वह वन में (वहाँ) गया जहाँ शुभ कार्य करनेवाला, पुण्यात्मा, अमरसेन स्थित था ॥११।। जैनधर्म में आसक्त, शुद्धचित्त राजपुत्र अमरसेन भर नींद सोया था ॥१२॥ वह विचारता है कि जीव-जहाँ विविध सुख प्राप्त करे, जहाँ जन्म-जरा और मरण नहीं, वहाँ जीवात्मा जब जाता है, अर्जित कर्म शेष नहीं रहते, गल जाते हैं ।।१३-१४।। उस स्थान का रहनेवाला, श्रृंखलाबद्ध गुणों का आगार, सोता हुआ अमरसेन उस हाथी को दिखाई दिया ॥१५।। सूर्य के समान तेजस्वी राजपुत्र (अमरसेन) को राज्य पट्ट धारण करने में धुरंधर जानकर हाथी उसे उठाकर उसके सिर पर कलश ढोरता है। नगरवासी जनों ने मान त्याग करके जय-जयकार किया ॥१६-१७।। घत्ता-पुरजन, मंत्री, अन्य अनेक राजा सभी अतुल बलवालों ने प्रणाम किया और स्त्रियों के मन को हरनेवाले राजा अमरसेन को हाथी के ऊपर चढ़ाया / बैठाया। वे ऐसे लगते थे मानों ऐरावत पर बैठा इन्द्र हो ॥३-२॥ कहा भी है-मेघों का बरसना, सज्जनों से याचना, सद्गुरु के वचन और राज्य की वृद्धि इच्छित फलदायी होती है ॥छ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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