SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२ अमरसेणचरिउ रत्ता देविए पंगु निमित्तु । तं तिय वेढि वि णिउसु दहि धित्तु ॥ ९ ॥ घत्ता मणुवह मण-मोहणि, सुगइ - णिरोहणि, दुच्चारणि णी एहि रया । हंधण राहं, तं रत्ताहं, कि ण करहि रइ-लुद्ध धुय ॥२- १०॥ उक्तं च गंगा वालुयंमि सायरजलहं नैव परिमाणं । जाणंति वुद्धिवंता, महिलाचरियं न जानंति ॥ छ ॥ [ २-११ ] इयतं सुणे वि लहु बंधवेहि । हंमहं उवयारणि प्रेम एहिं ॥१॥ सावत्तिय मार्यार होइ सुहि । जं एव पसार्याहं जुहं महि ||२|| पुर-पट्टण दीसह गाम जणि । वंदेसहि जिणु गुरु झुणहि सुणि ॥३॥ पिच्छिज्जइ बहु विहु चरिउ महि । दुज्जण सज्जण किउ मुर्णाहं तहिं ॥४॥ तहं काल विडंबिय रयणि तत्थ | तरु दुण्णिहु द्दिस माय सुत्थ ||५|| वइसेणु पहरुवा भयउ रक्ख । इत्थंतरि सहकारेहिं विवख ॥ ६ ॥ जवखु विजविखणिते वसहि सार । सुह कोर रूवि णिज्जि जिय मार ॥७॥ कीडा निमित्त ते भाय विट्ट | भइ रूवत सोहग्ग इट्ठ ता कोरि-पिया णिय कीरु वृत्त । ए गरुव- मणुव जुइराय इणि किज्जइ बहु विह भत्ति तत्तु । በረሀ जुत्त ॥९॥ ॥१०॥ 1 धम्म - काजि पिय सुगय हेय । संपज्जइ सुर-१र-पउ तहे ॥११॥ पंक्खिहि सुभाउ धम्मत्थ हूउ । अतित्थिहि करि पिय दाण-हेउ || १२ | तं णिणि कीरु सुणि कोरि पिए । उ अत्थि दव्वु हम पास धुए ॥१३॥ उवयार करउ हउ इष्णु भव्वु । विणु दव्वें कोइ न करइ गव्व ॥ १४ ॥ उवयारें उवयारु करंहं । सव्वई कोइ करइ भिंतह ॥ १५॥ जं किज्जइ तं अवगुणु करेइ । तं विरलउ जणणी जणई लोइ ॥ १६ ॥ अतिथिह परवादी णिच्चएण । विण्णि वि वंधव अच्छहु सुहेण ॥ १७ ॥ | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy