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द्वितीय परिच्छेद
१२१ हैं, जहाँ अति घने तृणों के अंकुर भी हैं ॥१३।। जहाँ सिंह गरजते हैं, हाथी बादलों के समान चिक्कारते दहाड़ते हैं ।।१४।। जहाँ फे फे करते हुए सुना कुत्ते घूमते हैं, वराह बार-बार पृथिवी खोदते हैं ।।१५।। उल्ल घू-धू शब्द करते हैं, कौए वहाँ बोलते हैं ।।१६।। शार्दल, सिंह, चीता, रोज, गेंडा, साँवर, मृग, भैंसा, लोमड़ी, विलाव, सेही, हाथी, रोछ आदि जहाँ मन के विरुद्ध कार्य करनेवाले अति दुष्ट जीव हैं ।।१७-१८॥ कहीं सिंह हरिण पकड़ते हैं, कहीं वहाँ न्योले सर्प से युद्ध करते हैं ।।१९।। जहाँ भूत-पिशाच संचरण करते हैं, डाकिनी, शाकिनी और जोगिनी मण करती हैं ।।२०।। जहाँ यम भी जाते हुए शंका करता है, काले हिरण-मनुष्य के वाण से मरने को आशंका करते हैं ।।२१।। ऐसे संकटपूर्ण वन में उन्हें पूण्य-योग से एक आम्र वृक्ष दिखाई दिया ।।२२।। क्षुधा ( भूख ) तपा (पिपासा ) से क्षीण काय वे पथिक उस वृक्ष के किनारे विश्राम करते हैं ।।२३।। वे दोनों भाई वाहन से भूमि पर ऐसे जाते हैं जैसे वीतरागी पैदल भमि पर चलते हैं ॥२४॥ मन में संसार को असार जानकर लोभ करते हो तो पूण्यास्रव का करो जिससे कि सार स्वरूप शाश्वत-पद ( मोक्ष ) प्राप्त हो और जिससे संसार के दुःख रूपी बोझे का संयोग न हो ॥२५-२६।।
पत्ता-वस्त्र, कम्बल और सम्बल से रहित, सत्य के क्रेता वे दोनों भाई निर्ग्रन्थ होकर संन्यास धारण करके सूर्योदय होने तक वन में स्थित रहे ॥२-९।।
[२-१० [ रानी देवश्री की कुटिलता के सन्दर्भ में अमरसेन-बइरसेन का
___ पारस्परिक ऊहापोह ] वइरसेन ने कहा हे भाई अमरसेन सूनो-राजा हमारे किस कार्य से रुष्ट हुआ।।१।। वहाँ राजा ने बिना अपराध के अयोग्य कार्य क्यों किया। ( उन्होंने ) उचित और अनुचित नहीं जाना ॥२॥ ऐसा सुनकर अमरसेन ने उत्तर दिया हे भाई ! दुराचारिणो माता के वचन नियम किसी दूसरे के द्वारा समझे नहीं गये। ऐसा सूनकर छोटा भाई वइरसेन कहता है ।।३-४।। जो माता राजा को मिथ्या कार्य कहती है लोगों ने उसकी कुनीति की क्या निन्दा की॥५॥ हे भाई! जो स्त्री लज्जा विहीन होती है ( वह ) स्वेच्छाचारिणी अपने भर्तार से क्या क्या नहीं कहती है ? ।।६।। जैसे वामन पुरुष के निमित्त चिरकाल तक जीवित रहनेवाले यशोधर ( राजा ) को रानी ने गला पकड़ कर ( दबा कर ) मारा और स्वयं मरकर छठे नरक को प्राप्त हुई । इसके
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