SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२० अमरसेणचरिउ जहि गुजहिं सीह-भयंकराई। दंतिय-चिक्कारहिं कइ घणाई ॥१४॥ जहिं फे करंति साओ भमंति । वहु कोल वसुह पुणु-पुणु खणंति ॥१५॥ कउसिय सद्दई धू-धू करंत । वाइसई सद्द तत्थई करंत ॥१६॥ सद्दूल-सोह-चित्ताइ-रोज्झ ।गइडे-संवर-मिय-महिस वुझ ॥१७॥ लउगा-मज्जारइं-सेहि-कुज्झ । अइ दुट्ट जीव जे मणि-विरुज्म ॥१८॥ कत्थई हरिणहं हरि हारयति । णउलाइ-सप्प संगरु करंति ॥१९॥ हिं भूय-पिसायई संचरंति । डाइणि साइणि जोयणि भमंति ॥२०॥ जहिं जमु संकइ गच्छंत एण। कि मणुय ण मरहि सरं तएण ॥२१॥ ते हइ-संकडि-वणि पुण्ण-जोई। सहयारु वरु वि दिट्ठउ दुमोइ ॥२२॥ तहु तडि वीसमियई पंथरीण । वहुच्छुह-निसयाइ वि गत्तखीण ॥२३॥ ते जाहिं गच्छहिं भूमि भाय । ते पय चालहि णं कु वियराय ॥२४॥ संसारु-असारु वि मणि मुणेहु । हो लोय हो पुण्णासउ करेहु ॥२५॥ जि पावहु सासय-पउ वि सारु । ण वि जोयहु जे भव दुहह भारु ॥२६॥ घत्ता ते भायर, सच्च कयायर, सुज्जोत्थ वणि संठिय। ण वि चीरु वि कंवलु, णउ तहं संवलु, किप संग्णास विगंठिया ॥२९॥ [२-१० ] वइसेणि भणिउं सुणि अमरसेणि । पहु रुटुउ हमकज्जेंण केणि ॥१॥ विणु अवरहिं णिव कि उ(किं)अजुत्तु । णउ जाणिउं जुत्ताजुत्तु तत्तु ॥१॥ तं सुणि वि पउत्तउ अमरसेणि । भो बंधव विडमायहि वयणि ॥३॥ अण्णहु ण कासु णियमेण मुणि । तं णिसुणि चवइ लहु वइरसेणि ॥४॥ जं माइ अलीकइ कज्जु भणइं। तं पहु जण णिदिउ किं कुणइं ॥१॥ भो बंधव यं तिय लज्ज-चत्त । किं किं ण भहिं सुइरि णिय भत्त ॥६॥ जिह चिरु जसहरु कुज्जय णिमित्तु। राणिय मारिउ दिय कंठ चित्तु ॥७॥ मरिऊण सत्तगइ जोणि पत्तु । पुणु किय सुकम्म देवत्त पत्तु ॥८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy