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अमरसेणचरिउ दिणु उग्गइ पुणु णुिव-आण लेवि । णउ रक्खिय वेड्ढिय जाइ ते वि॥११॥ णित्र-णंदणवण हय-रूढ राय । कोडंति सुच्छ रह सेण-भाय ॥१२॥ तो भणहि चंड भो कुमर-भाय । तुम मारण पेसिय हम्म राय ॥१३॥ तुम अलिउ कलंकु सुणेवि आय । इव सुमरहु णिय मणि वीयराय ॥१४॥ तुम मरणावत्थहं सुगइ-दाय । सरलं गुलि सोहिय पाणि-पाय ॥५॥ तिणु वयणु सुणेप्पिणु रायपुत्त । हम किं किउ पहु अवराहु इत्त ॥१६॥
पत्ता णउ किउ पहु भल्लउ, वयणु अमुल्लउ, णिकज्जे पहु कुविउ हमि । णउ हियइ वियारिउ, दोसु हमारउ, किं लग्गइ अह णस्थि किमि ॥२-७॥ उक्तं च
भोगिनः कंचुकासक्त्या क्रू रा कुटिलगामिणी, दुःखैसप्पिणी यत्था, राजा च भुजंगवत् ॥१॥ मणि मंत्रौषधी स्वस्थ, सर्व [4] दग्धं विलोकितः। नृपद्रष्टिविषे दग्धं, न द्रष्टा पुनरुत्थितः ॥२॥
[२-८] परसप्पर जहि वे वि भाय । भो बंधव भयि जाणिउँ स राय ॥१॥ णउ रायदोसु णिच्चइ मुहं । विरमायहि किउ हमि अस्स हेहिं ॥२॥ णउ माय-पियरइ व होइ दोसु । परिणवइ स (सु) हा सुहु कम्म घोसु ॥३ किय कम्महं अग्गइच्छुट्टि पत्थि । हंढइ जिम सत्थहं जु लिउ मत्थि ॥४॥ भो चंड-यम्म इम करहु झत्ति । हम खंडहु सिर णिव करहु संति ॥५॥ तं सुणि मायंगह दयह भाउ । उप्पण्णउ कुमरह भर्हि भेउ ॥६॥ जइ णिय-पुरु-चइ वि जाहु विएसहं । जइ तुम-णाउ ण सुणइ पहत्तहं ॥७॥
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