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________________ अमरसेणचरिउ [ १-२२ ] सुहिउ ॥४॥ हवई ॥५॥ तं नि (णि) सुणि वि वीउ भणई वाय । हउं किं करोमि णिहि-हीणु जाय ॥१॥ एकइ ण वराडी जाइ महु । किउ पुज्जउ गुरु तिल्लोय - पहु ||२|| अक्खि विfor वि भाय णिरु । वउ लिहि जईपहि दुरियहरु ॥३॥ as far आहारह णेमु किउ । णिसुणंत भव्वयण अइ पुणु विष्ण भाय गुर कहि सुमई । किउ अण्ण- पयारह पुणु तई अक्खइ मुणि चउमासि एसु । अट्ठाहियणंदीसुर-पव्व एसु ॥६॥ किज्जइ णिम्मलु वउ रउ-हरेसु । जिण पुज्जा किज्जइ तउ करेसु ॥७॥ तं णिसुणि वि मण वय-काय वे वि । संथिय उवासु निय 'गुर-समीवि ॥८॥ णवयार-गुर्णाहं एयग्ग चित्त । जं राहई सुर-पर सिवह-पत्त ||९|| गय सुज्जगम्मि णिय साहू सत्थ । किन एहाणु पहिरि चंदुज्ज-वत्थ ॥१०॥ कउडियs पंच तहं देवि तत्थ । लिय फुल्ल सुधइ रहसि सुच्छ ॥ ११॥ जिणु सुइ-गुरु पुज्जि विथुइ करेवि । सुहज्झाणें सामायउ सरे वि ॥ ८२॥ पुणु भोयण - वेलइ सेट्ठि सत्थ । उवविट्ठ वेवि चरु भुंजणत्थ ॥१३॥ तिन्ह भायण सेट्ठिणि धित्तु भोजु । षडरस सजुत्तुच्छु डमणुज्जु ॥१४॥ सुपरोसिउत्तहं भव्वु जोइ । णित्थरिहइ णिय किय पुष्ण लोइ ॥ १५ ॥ तह चितहि नियमण सुद्ध भाय । जइ पत्तु मिलइ इव को वि आय ॥ १६ ॥ तं देहि भोजु तं णइ वि पाय । ॥१७॥ इय चिति विभावहि भावणाई । जा मोक्ख सोक्ख - उप्पाय णाई ॥१८॥ तं पुण्णहं चारण-जुयल आय । तव तेय-दिवायर मयण घाय ॥ १९ ॥ सिद्धहं दंसणु वरु देवयाई । गुर णिव समाणु जसु पिहमिमाहं ॥२०॥ १०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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