SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९४ अमरसेणचरिउ जिणधम्महं विणु न वि सक्क सुक्खु । जिणधम्महं विणु न वि होइ मुक्खु ॥१८ इउ परमक्खर इउ परम-मंति । मिच्छत्त-वयणु मन पडिसि भंति ॥१९॥ घत्ता मिच्छत्तु विच्छंडहि जीव तुहुँ, जिम तुट्टइ संसारु । मणुय सग्गि सुह पाइ करि, पावहि मोक्ख-दुवारु ॥१-१९॥ [१-२०] इउ चिति वि विण्णि वि भाय तहिं । हम णिक्कमिय जिणधम्म-रहि ॥१॥ इह विवहारी धणु इत्थु लोइ । जो दिणि-दिणि मुणिवर-दाणु देइ ॥२॥ जिणु-अंचइ वसुविह-दव्व-लेइ । जण-पोसइ सत्तू-कार-देइ ॥३॥ साहम्मियवच्छलु करइ सोइ । सहसत्तुदयालउ-हियइ होइ ॥४॥ अरहंतुच्छंहि गउ णमइ कासु । जिणवर-वय-धारिय-तिण्ह दासु ॥५॥ हम पुण्णहीण जिणधम्म-चत । वहु पावपंक खुब्भिय णिरुत्त ॥६॥ संसार-भवण्णव-पडिउ जीउ । णीसरइ ण विणु जिणधम्म-कील ॥७॥ इउ चिति वि जिणवर-धम्म-नत्त । अच्छहि सुहज्झाणे लोणचित्त ॥८॥ णउ दूहहि सुत्तुह कहव तहिं । कोरंति केर विवहारियहि ॥९॥ अण्णहि दिणि चितउ साह तहि । ए विणि भव्व जिणभत्त-मणि ॥१०॥ किज्जइंउवाउणिच्छरहि खणि । किय कम्म असुह कप्पेहि रउ । जि संपज्जइ इणि सुरहपउ ।।१२।। अण्णहि दिणि चिति वि चेयालई । सेट्ठि लेवि गउ भाय वि हालइ ।।१३।। पणविउ विस्सकित्ति मुणिसारउ । काम-कुरुह कप्पणह कुठारउ ॥१४॥ जो भन्वहं भव-उवहि उतारउ । सायवाय जो वाणि वियारउ ॥१५॥ जो धमत्थ-शाण-मउणेहि थक्कु । सावयहं धम्मु ईरहि णिसंकु ॥१६॥ ॥११॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy