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युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान देवभद्रसूरि, धनेश्वरसूरि, ननसूरि, पार्श्वदेवगणि (श्री चन्द्रसूरि), महेन्द्रसूरि, मुनिचन्द्र सूरि, रामदेवगणि, वर्धमानसूरि, मुनिचन्द्रसूरि, रामदेवगणि , वर्धमानसूरि, शान्तिसूरि'।
अनेक सन्त हुए, जिन्होने अपनी लेखनी से कई कथाएँ, टीकाएँ आदि की रचना करके भारतीय जैन संस्कृति का गौरव तथा जैन सिद्धान्तों के प्रचार प्रसार में चारचाँद लगा दिये । अतः उस समय का युग साहित्य के क्षेत्र में स्वर्ण युग के नाम से जाना जाता था।
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