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जिनमंदिर के सन्मुख मृत गाय :
दादा गुरुदेव की प्रवचन शैली का प्रभाव जनगण में बढ़ने लगा तो जैन धर्म की महिमा बढ़ने लगी । उससे चिढ़कर तुच्छ द्वेषी व्यक्ति जैनशासन की निन्दा के लिये षड्यन्त्र रचने लगे । एक दिन किसीने एक मृत गाय को जैन मंदिर के सन्मुख फेंक दिया । प्रातः काल पुजारी मृत गाय देखकर सेठ के पास पहुँचा और स रा वृत्तान्त सेठ से कहा- और सेठ ने गुरुदेव के पास जाकर वृत्तान्त कहा, तुरन्त ही गुरुदेव ने परकायप्रवेशिनी विद्या द्वारा मृत गाय में जीव संचार कर गाय को निकट शिवालय की ओर भेज दिया । वहाँ पहुँचते ही गाय गिर पड़ी। संस्कृत की लोकोक्ति चरितार्थ हुई :" परस्य खनति गर्तं, तस्य कूपः प्रसज्यते । "
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युगप्रधान आ . जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान
अर्थात् दूसरों के लिये खड्डा खोदने वाले के लिये कुआँ तैयार होता है। अतः षड्यन्त्र करने वालों की बड़ी निन्दा हुई और वे लज्जित होकर क्षमा याचना करने लगे । अन्धे को दृष्टिदान :
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सूरत में एक समय की बात है। वहाँ के सुप्रसिद्ध श्रेष्ठिवर्य के पुत्र की नेत्रज्योति किसी कारण से नष्ट हो गई थी। सेठ पुत्र की इस पीड़ा से दुःखी था । अनेक उपाय किये, किन्तु सफलता न मिली । अन्त में आचार्यश्री की शरण में आया। गुरुदेव ने मंत्रबल से श्रेष्ठवर्य के पुत्र के नेत्रों में ज्योति का संचार कर दृष्टि दान किया। ५८ सर्प - विष विनाश :
एक बार भरुच नगर के सुल्तान के पुत्र को सर्प ने डस लिया, जिससे वह बेहोश हो गया । अनेक विद्या, मन्त्र, तन्त्र का प्रयोग किया। लेकिन वह विष मुक्त नहीं हुआ। अंत में मृत घोषित कर दिया गया। उसी समय सेठ ने सुल्तान को आचार्य श्री की चमत्कारपूर्ण महिमा का वर्णन किया । सुल्तान तुरन्त पुत्र के शव को आचार्य देव की शरण में ले गया । परोपकारी गुरुदेव ने अपनी तपोमयी शक्ति से विष का विनाश कर सुल्तान के पुत्र में प्राणों का संचार किया ।" और जैनशासन की शोभा बढ़ाई।
ऐसी एक नहीं अनेक घटनाएं हैं, जिनसे आचार्यदेव की चमत्कार-मयी तप शक्ति के दर्शन होते है ।
५७.
५८.
५९.
खरतर पट्टावली ३, पृ. ५०
श्री दादा जिनदत्तसूरि चरित्र एवं पूजा विधि - श्री धर्मपाल जैन, पृ. २०
युगप्रधान जिनदत्तसूरि- अगरचंदजी नाहटा, पृ.८३
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