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युगप्रधान आ . जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान
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" श्री सुधर्मासामि परम्परा खरतरगच्छ का भट्टारक जंगम युगप्रधान श्री जिनदत्तसूरि प्रतिबोधित छतीस राजकुली सवालाख श्रावक खरतर तेहना गोत्र लिखतं । " २८
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इस तरह स्पष्ट है कि आचार्यश्री ने लाखों की संख्या में नये जैन श्रावक बनाये थे और इस तरह जैन धर्म और समाज ही नहीं, समग्र भारतीय समाज को नीति और सदाचारपूर्ण जीवन की ओर अग्रसर होने का रास्ता दिखाया था ।
राजप्रतिबोध :
आचार्यश्री के शील ओर गुणों की ख्याति उस समय के शासक वर्ग में भी फैल चुकी थी । उनके प्रभावक व्यक्तित्व से अनेक तत्कालीन छोटे-मोटे राजा प्रभावित हुए थे। ऐसे राजाओं में अजमेर नगर के राजा अजयराज के पुत्र अर्णोराज का नाम प्रमुख है । अर्णोराज अपने समय के अत्यंत प्रतापी राजा थे । शिवभक्त होते हुए भी वे जैन शासन का सम्मान करते थे ।
I
गुरुदेव के भक्तों ने अर्णोराज से निवेदन किया कि आप गुरुदेव के दर्शनार्थ पधारें। श्रावकों के साथ अर्णोराज गुरुदेव के चरणों में उपस्थित हुआ। ललाट पर चमक रहे गुरुदेव के ब्रह्मतेज को देखकर अचंभित हो गया । अर्णोराज का एक भयानक दुर्गुण था - वे जिह्वास्वाद के लिए मांसाहार करते थे । गुरुदेव ने उसे धर्म का स्वरूप समझाया और कहा कि अपने क्षणिक आनंद के लिए किसी निरीह प्राणी की हिंसा करना महान् पाप है। हिंसा - अहिंसा का उपदेश सुनकर राजा की आँखें खुल गई। वह पश्चात्ताप करने लगा- 'आजदिन तक जिन प्राणियों की हिंसा की वह उनकी नहीं मेरी हिंसा है । गुरुदेव मेरे गुनाह माफ करो। कृपा दृष्टि हमेशा बनाये रखें। 'गुरुदेव ने आशीर्वाद दिया ।
२८.
(क)
(ख)
(ग)
(घ)
खरतरगच्छ के प्रतिबोधित गोत्र और जातियाँ
लेखक - अगरचंदजी, भँवरलालजी नाहटा, पृष्ठ- २७
विशेष गोत्रों की जानकारी के लिये ओसवालवंश- सोहनराजजी भंसाली
द्रष्ट्रव्यम्)
ओसवाल जाति का इतिहास- सम्पतराज जी भंडारी द्रष्ट्रव्यम्
महाजन वंश मुक्तावली - उपा. रामलालजी गणि
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