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________________ युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान जैनधर्मी श्रावकों की वृद्धिः आचार्य जिनदत्तसूरि का दूसरा इतिहासप्रसिद्ध भगीरथ कार्य था अनेक अजैनों को जैन बनाना । वे एक ऐसे महापुरुष थे, जिन्होंने लाख से अधिक लोगों को जैन धर्मी बनाया। जैन परम्परा में आज तक इतनी मात्रा में अजैन गृहस्थों को प्रतिबोध दे कर जैन बनाने का कार्य किसी अन्य ने नहीं किया है। इन्होंने सवा लाख नये जैन बनाये, उनको विविध नये गोत्रों की स्थापना करके उन गोत्रों में स्थापित किया। २३ इस महान कार्य के बारे में अनेक उल्लेख मिलते प्राकृत-प्रबन्धावली में लिखा है कि-जिनदत्तसूरि जी ने ओसियां में लक्षाधिक जैन बनाये थे। २४ आचार्यश्रीने सिन्धु प्रदेश में विहार करके एक लाख अस्सी हज़ार घरों को प्रतिबोध देकर ओसवाल बनाया। २५ __ सूरि-परम्परा-प्रशस्ति में लिखा है कि - विक्रमपुर में संख्याबद्ध माहेश्वरी आदि कुटुम्बों ने जैन धर्म स्वीकार किया। २६ __ अगरचंदजी व भंवरलालजी नाहटा के मतानुसार- विक्रमपुर व उसके आसपास आपके प्रतिबोधित श्रावकों की संख्या लक्षाधिक होगी, कारण कि विक्रमपुर में आपने महामारी रोगोपद्रव शांत किया था उसी समय ५०० पुरुषों और ७०० स्त्रियों ने श्रमण धर्म स्वीकार किया था। वहाँ विशेष धर्म प्रभावना हुई थी इसी लिए उसके आसपास के क्षेत्रों का प्रभावित होना स्वभाविक मालूम पड़ता है। २७ आचार्य जिनदत्तसूरिजी ने जिन लोगों को जैन बनाया और अलग-अलग गोत्रों में स्थापित किया इन गोत्रों की सूची प्रस्तुत करनेवाला एक प्राचीन पत्र प्राप्त हुआ है। जो इस प्रकार है - २३. सवालाख खरतर जं. यु. भ. जगगुरु पूज्य श्री जिनदत्तसूरि कीधा॥ खरतरगच्छ के प्रतिबोधित गोत्र, और जातियाँ- अगरचंदजी नाहटा, पृ.३१ युगप्रधान जिनदत्तसूरि-अगरचंदजी नाहटा, पृ.४४ वही, पृ.४५ खरतर पट्टावली संग्रह-जिनविजयजी, पृ.४ युगप्रधान जिनदत्तसूरि-अगरचंदजी नाहटा-४४-४५ २६. २७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002768
Book TitleJinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSmitpragnashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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