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बाद में दादासाहब की संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश कृतियों का विस्तृत तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है।
आचार्यश्री की अनेक लघु कृतियों का पुनः संशोधन और अनुवाद करके साध्वीजी ने परिशिष्ट में बहुमूल्य सामग्री दी है।
इस तरह जैन धर्म के एक प्रभावक आचार्य के जीवन और साहित्य का यहाँ वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन प्रस्तुत है, जो जैन धर्म और साहित्य के अभ्यासियों को उपयोगी सिद्ध होगा।
मैं साध्वीश्री स्मितप्रज्ञाश्रीजी के इस प्रयास की अनुमोदना करता हूँ और उनका ज्ञानयज्ञ भविष्य में भी अनवरत चलता रहे ऐसी शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ।
१-५-१९९९
-र. म. शाह
निर्देशक (भूतपूर्व अध्यक्ष, प्राकृत-पालि विभाग, गुजरात युनिवर्सिटी, अहमदाबाद)
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