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आशीर्वचन
“स्वान्तःसुखाय परजनहिताय'' इस लक्ष्य को ध्यान में रखकर साध्वी श्री स्मितप्रज्ञा श्री जी ने जनमानस को आत्मोन्मुख बनाने के लिए “युगप्रधान आचार्य श्री जिनदत्तसूरि का जैन धर्म एवम् साहित्य में योगदान' इस विषय पर शोध कार्य किया है। दादा श्री जिनदत्तसूरि जी का साहित्य आज दिन तक प्रकाश में नहीं आया इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए साध्वी जी ने जिनदत्तसूरि जी के साहित्य के ऊपर पीएच.डी. करने का विषय चुना।
साहित्य दर्पण का कार्य करता है। जिस प्रकार दर्पण मुखाकृति पर लगे हुए दागों का निरीक्षण करता है ठीक उसी प्रकार साहित्य भी जन-मानस को सही दिग्दर्शन कराने में सक्षम है । भौतिकता की चकाचौंध से भ्रमित पथिकों को आत्म विकास का मार्ग दिखाता है। साध्वी जी ने कठिन परिश्रम करके प्रस्तुत शोध ग्रन्थ को सम्पूर्ण कर जिनशासन का गौरव बढ़ाया है।
विषय का तलस्पर्शी एवं सूक्ष्म ज्ञानार्जन करने के लिए लक्ष्य निर्धारित आवश्यक है। इसी हेतु साध्वी जी ने पीएच.डी. करने का निर्णय किया। अध्ययनशील रहने में कठिनाइयों का सामना करना पडता है। इसमें भी श्रमण पर्याय तो संघर्षों से परिपूर्ण है। इसके बावजूद भी अथक् प्रयास करके इन्होने साहित्य सेवा का यह बहुत ही सराहनीय कार्य किया है।
अन्तःकरण से यही मंगल आशीर्वाद देते हैं कि भविष्य में इसी प्रकार संयम साधना के साथ-साथ साहित्य साधना चलती रहे।
अहमदाबाद २२-४-१९९९
विचक्षण पदरेणू मनोहर श्री मुक्तिप्रभा श्री
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