________________
युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान बयाना का अन्तिम शूरसेन शासक कुमारपाल था, शूरसेन राजवंश के अर्न्तगत जैन धर्म की प्रतिष्ठा एवं प्रसार का ज्ञान होता है। ९५
राजस्थान के करीब सभी शासकों ने जैन सन्तों को आदर की दृष्टि से देखते हुए, जैन धर्म के प्रति उदारता और सहिष्णुता का परिचय दिया, जिसके कारण राजस्थान में जैन धर्म एवं अहिंसा का प्रभाव अक्षुण्ण बना रहा।
आचार्य जिनदत्तसूरि जी, आचार्य हेमचन्द्राचार्य आदि सन्तों को पा कर गुजरात, राजस्थान, मालवा आदि प्रान्त अज्ञान, रूढ़िवादिता एवं अन्ध वेश्वासों से मुक्त हो धर्म के महान् केन्द्र बन गये।
इस प्रकार उस समय का पश्चिम भारत जैन धर्म के लिए एक विशिष्ट धर्मक्षेत्र बन गया था।
*****
Jaiekducation जैन संस्कति और राजस्थान.पि १३६ Personal use Only
www.jainelibrary.org