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युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान मालवा के वाक्पति मुंज को उच्च कवित्व, ओजस्वी भाषण, तर्क, कला, शास्त्रों तथा आगमों का अध्येता बताया गया है । ६२
कल्हण के अनुसार काश्मीर के शासक कलश और भोज दोनों ही विद्वान और कवि थे, दोनों मित्र थे। भोज ज्ञान का आदर करता था, विद्वानों का सन्मान करता था, और ज्ञान पिपासुओं को सहायता कर प्रोत्साहन देता था। उसकी राजसभा में ज्ञान में देदीप्यमान पांचसो प्रखर विद्वान विद्यमान थे। ६३
वाक्पतिराज ने "मुंज प्रतिदेश व्यवस्था" (भारत का भौगोलिक वर्णन)लिखा था।
धारानगरी का राजा भोज विद्यानुरागी था। उसने एक संस्कृत पाठशाला की स्थापना की थी। उनके आश्रय में बड़े बड़े विद्यालय और शिक्षण संस्थाए चलती थीं।६४
अन्तिम परमार राजा अर्जुनवर्मन काव्य प्रतिभा का धनी था, वह काव्य और संगीत का निधि था । उसके लिए कहा गया है कि उसने सरस्वती को पुस्तक और वीणा के भार से मुक्त किया। ६५
अमितगति यह एक यशस्वी कवि था जिसने कई ग्रंथ लिखे थे।६६
अतः परमारयुग में अनेक कवियों और चिन्तकों ने इस युग को अपनी प्रतिभा से प्रभावित किया। इससे सिद्ध होता है कि इस युग में परमार शासकों ने विद्या और कला के क्षेत्र को उन्नत कर भारती भंडार भरा था।
राजपूत युग में कथा साहित्य का अच्छा विकास हुआ था। जैन आचार्यों ने बहुत से कथाग्रंथ और इतिहास भी लिखे। ६७
श्री हर्ष कन्नोज-नरेश जयचंद (बारहवीं सदी) की सभा में थे, इन्होंने नैषधीय महाकाव्य लिखा है। ६८
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वही, पृ.२८२ राजपूत राजवंश, पृ.२८३ भारत के प्राचीन राजवंश, पृ.१२२ राजपूत राजवंश, पृ.२८४ वही, पृ.२८४ भारतीय संस्कृति का इतिहास, श्री स्कन्द कुमार एम.ए., पृ.१३३ वही, पृ.१३१
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