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युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान
१६९ जो धार्मिक पुरुष है, जो शास्त्रानुसार आचरण करता है, जो सुपथगामी है, गीतार्थ है, धर्मपरायण है, विधिमार्ग का पालन करता है, पंचपरमेष्ठी का स्मरण करता है - ऐसे उपरोक्त गुणों से युक्त सुसंस्कारवान सज्जन पुरुष के मनोवांछित धार्मिक कार्य शासन देव पूर्ण करते हैं। वे पञ्चभूतिक शरीर को त्यागकर परमपद को प्राप्त करते हैं।
उपरोक्त वर्णन के आधार पर धार्मिक और गीतार्थ पुरुषों के शील स्वभाव एवं सद्गुणों का स्पष्टीकरण अच्छी तरह किया जा सकता है।
(६-२६) आचार्य श्री जिनचैत्य में प्रचलित आशातनाओं पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि
पूर्व विवरण से स्पष्ट होता है कि-"आचार्य श्री जिनदत्तसूरिजी'' के समय से पूर्व चैत्यवास में विभिन्न प्रकार की बुराइयाँ फैल चुकी थी, आशातनाएं घर कर चुकी थीं जिनसका सामान्य एवं संक्षिप्त विवरण इस प्रकार किया जा सकता है।
जोवणत्थ जा नच्चइ दारी सा लग्गइ सावयह वियारी। तिहि निमित्तु साव यसुय कट्टहिं जंतिहि दिवसिहि धम्मह कि दृहि ॥ ३३ ॥
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बहुय लोय रायंध य पिच्छहि जिणमुह-पंकउ विरला वंछहि।
जणु जिणभवणि सुहत्थु जु आयउ मरइ सु तिक्खकडक्खिहिं घायहु ।। ३४ ॥
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