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युगप्रधान आ . जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान
इस संसार में विभिन्न प्रकार के नद एवं नदियाँ पायी जाती हैं वे सब विषम प्रवाह के समान हैं उन नद एवं नदियों में से वही बच सकता हैं, छुटकारा पा सकता है जिसके पास सुगुरूपी बड़ा जहाज हो । अन्यथा जिस प्रकार नदियों में मगर इत्यादि जलचर प्राणी (हिंसक ) रहते हैं वे मानव को निगल जाते हैं उसकी यात्रा समाप्त कर देते हैं। परन्तु याद रखने की बात यह है कि जो बिना जहाज अर्थात् सद्गुरुरहित होगा उसी
वह स्थिति होगी गुरु के सम्मुख तो किसी जलचर प्राणी के उपस्थित होने की बात असम्भव है । इस प्रकार जो व्यक्ति पुण्यहीन होता है वह अपना सर्वस्व नष्ट कर डालता है। यहाँ तक कि सद्गुरु के बिना लोक प्रवाह में पड़ा हुआ मानव चार गति एवं चौरासी लाख जीव योनि भ्रमणरूप संसार में पुनः जा गिरता है।
इसलिए सद्गुरुओं की मदद से सांसारिक मायाजाल से मुक्त होकर हमेशा सुन्दर भव की प्राप्ति के लिए प्रयासशील रहना चाहिए। सदाचरण करना चाहिए । जिनाचार्यों के द्वारा नियमित मर्यादा और नियमों का पालन करना चाहिए जो अन्य भव के लिए सुखरूप होता है ।
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कुपथगामी और सुपथगामी का लक्षण और महत्त्व -
जो व्यक्ति कुपथ का आचरण करते हैं कुपथगामी कहे जाते हैं, वे पुण्यहीन है । जिन्हे सद्गुरु का सम्पर्क नहीं मिलता वे परमात्मा की पहचान नहीं कर सकते । अर्थात् उन्हें तो स्वप्न में भी मोक्षलक्ष्मी नहीं प्राप्त हो सकती। इसलिए ही कहा गया है। कि- “संस्कारहीन व्यक्तियों की दुर्दशा ही होती है । कभी-कभी सद्गुरुओं का संयोग मिल भी जाता है तो अपने कर्मदोष के कारण वे सद्गुरुओं का सान्निध्य कर ही नहीं पाते। जिस प्रकार कायर पुरुष धनुष्य धारण करके लक्ष्यवेध नहीं कर सकता उसी प्रकार लोक प्रवाह रूप नदी में पड़ा हुआ जीव संसाररूपी सागर में प्रविष्ट हो जाता है। ऐसे पथगामी जीव धर्म को धारण नहीं कर सकते । अर्थात् मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते ।
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कायर (अस्थिर वृत्तिवाले) पुरुषों को किक्काण देश के चपल घोड़े के समान बताया हैं । जैसे कि- किक्काण देश का घोड़ा चंचल होता है, वायुवेग से कूदता हुआ मार्ग को छोड़कर कुमार्ग पर चाला जाता है अर्थात् पथभ्रष्ट हो जाता है। वैसे ही कायर पुरुषों को परम समाधि का संगम नहीं होता है। ऐसे पुरुष उत्तम कुल में जन्म लेने के बाद भी विधि मार्ग का आचरण नहीं करते हैं। यदि गीतार्थ गुरु उनको समझाते हैं तो उनको मारने दौड़ता है । ऐसी स्थिति में गीतार्थ पुरुष को चाहिए कि वह कायर पुरुष का त्याग
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कर दे।
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