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युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान
१६५ आचार्य श्री जिनदत्तसूरिजी रचित “उपदेश रसायन रास' नामक ग्रन्थ को विषय-वस्तु की दृष्टि से देखा जाय तो वह एक उपदेशात्मक कृति है जिसमें भव से छुटकारा पाने के लिए साधन एवं सहायक सद्गुरुओं और नियमों के विषय को कलात्मक एवं सुन्दर ढंग से वर्णित किया गया है । सामान्य तौर पर इसके विषय वस्तु को निम्न भागों में विभक्त करने से विषय स्पष्टीकरण अति सुलभ बन पड़ेगा।
(क) गुरुवन्दना मङ्गलाचरण
(ख) मानव जन्म की सफलता एवं विफलता में सद्गुरुओं एवं कुगुरुओं का सहयोग एवं उनके स्वरूप का वर्णन ।
(ग) ज्ञान की विशिष्टता एवं उसका प्रदर्शन ।
(घ) जिन उपाश्रयों एवं मन्दिरों से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के नियम अथवा तद्सम्बन्धी विवेक।
(ङ) विश्व बन्धुत्व की भावना।
मंगलाचरण की प्रथा कवि की अपनी कोई नवीन कल्पना नहीं है। परन्तु उसमें विषयवस्तु एवं इष्ट के आधार पर जो परिवर्तन होता है वह रचनाकार की अपनी अलग दृष्टि होती है। इस प्रकार “युगप्रधान श्री जिनदत्तसूरिजी' प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना श्री पार्श्वनाथ स्वामी एवं शासनाधीश्वर श्री महावीर स्वामी की वन्दना सम्बन्धी मंगल श्लोक से प्रारम्भ करते हुए कहते हैं -
पणमह पास-वीरजिण भाविण तुम्हि सव्वि जिव मुच्चहु पाविण। घरववहारि म लग्गा अच्छह खणि खणि आउ गलंतउ पिच्छह ॥१॥
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लद्धउ माणुसजम्मु म हारहु अप्पा भव-समुद्दि गउ तारहु। अप्पु म अप्पहु रायह रोसह करहु निहाणु म सव्वह दोसह ॥ २॥
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