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युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान इस शब्द का अर्थ है रस से पूर्ण अर्थात् ऐसा धार्मिक उपदेश जिसमें जनता के लिए मधुर मधुर रस प्रवाहित हो रहा हो। जो उसके चतुर्मुखी विकास के लिए अभूतपूर्व
औषधि के समान हो । जिस प्रकार रोगी रसायनों को पीकर हष्ट पुष्ट हो जाता है उसी प्रकार "उपदेश रसायन रास' नामक काव्य के श्रवण से, श्रावक श्राविकाएं, समस्त जन समुदाय एवं धर्म विरुद्ध लोग भी धार्मिक बनकर अधर्म एवं कदाचाररूपी रोग से रहित हो जाय ऐसे काव्य को उपदेश रसायन रास की संज्ञा दी जा सकती है।
इस प्रकार जिस में उपदेश रूपी रसायन है ऐसा रास काव्य है 'उपदेश रसायन रास'।
१२ वीं शताब्दी के प्रसिद्ध धर्म सुधारक आचार्य श्री ने रास को उपदेश का साधन बनाया। रास के माध्यम से सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक स्थिति को सुधारने के लिए एक सुंदर प्रयास किया।
इसके द्वारा चैत्यों, जिनालयों अथवा उपाश्रयों में रहनेवालो में जो विकृतियाँ फैली हुई थी जैसे कि-रात्रि में मन्दिरों में होने वाला रास और अन्य विकार या कदाचार जिसका वर्णन पहले किया जा चुका है-उसका विरोध श्री दादाजी ने रास के माध्यम से जमकर किया । यद्यपि इस कार्य में “श्रेयांसि बहु विध्नानि” अनुसार कई तरह की कठिनाईयाँ भी आई परन्तु मृगेन्द्र की तरह दहाड़ते हुए दादाजी अपने कार्य से कभी विचलित नहीं हुए।
उपदेशों को रास में लेने का दसरा प्रमुख हेतु यह है कि नृत्य-गान आदि से अभिलसित जनता को यदि अचानक किसी अन्य मार्ग या साधन से दूसरी तरफ मोड़ा जाय तो आकर्षण कम होगा और लोगों को समझाना भी कठिन काम होगा । इन परिस्थितियों को ध्यान में रखकर दादाजीने रास नामक काव्य प्रकार को ही अपने उपदेश का प्रमुख साधना बनाया। तत्कालीन जन समुदाय की गाथा को भी ध्यान में रखा । इस प्रकार उस समय के देशकाल और वातावरण के आधार पर दादाजीने अपने हेतु की सिद्धि के लिए जो कुछ किया वह समीचीन ही था।
_ 'उपदेश रसायन' के अन्तर्गत लोकप्रवाह में प्रवाहित जीवों को जागत करने के लिए सद्गुरु का स्वरूप, चैत्य- विधि - विशेष आदि विषयों का निरूपण किया गया है। सर्वसाधारण जनता के लिए जीवनोपयोगी उत्तम शिक्षाएं संसार की नश्वरता तथा सामाजिक विषमता का स्पष्ट वर्णन करके मनुष्य को धर्मोन्मुख करने हेतु उपदेश रसायन' रास की आपने रचना की है।
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