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प्रकरण - १ आ. जिनदत्तसूरिजी के समय के पश्चिम भारत का विहंगावलोकन
गुजरात के इतिहास को हम सुख-समृद्धि और संस्कार की दृष्टि से महान कह सकें ऐसा युग है "सोलंकी युग" । " इस युग में मूलराज, भीम, कर्ण, सिद्धराज जयसिंह और कुमारपाल जैसे एक के बाद एक साहसी, पराक्रमी और प्रजावत्सल राजाओं ने राज्य किया और गुजरात की कीर्ति में चार चाँद लगा दिए। ई. स. ९४२ से १३०४१३१४ लगभग साढे तीन सौ वर्ष का यह समय गुजरात के इतिहास में “स्वर्णयुग” के नाम से प्रसिद्ध है।
सोलंकी राज्य को पराकाष्ठा पर पहुँचाने वाले सिद्धराज जयसिंह और कुमारपाल राजा थे । इन दोनों के समय विशाल राज्य का विकास हुआ। इन दोनों राजाओं के समकालीन विद्वान् कलिकाल - सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य जैसे महान प्रभावक युगसंस्थापक आचार्य हुए, जिन्हों ने जैन धर्म और साहित्य की बहुत बड़ी प्रभावना की । आचार्य हेमचन्द्राचार्य के समय में ही उन्हीं के जन्मस्थान के निकट धवलक्कपुर (धोलका) में खरतरगच्छ के महान प्रभावक युगप्रधान दादा श्री जिनदत्तसूरिजी अवतीर्ण हुए। आचार्य श्री उस युग की आवश्यकता के अनुरूप उत्पन्न हुए थे और उसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए सफल प्रयत्न से वे युगनिर्माता बन गये ।
उनके ज्ञान - सूर्य की किरणों के प्रसार से गुजरात, राजस्थान, मालवा आदि प्रांतो की संस्कृति के प्राण पुलक ऊठे थे, धरा का कण कण अध्यात्म आलोक से ज़गमगा ऊठा था। सामाजिक, राजनैतिक जीवन में भी नवचेतना का जागरण हुआ था, साहित्य संस्थान को नया रूप मिला था, कला सजीव हो गई थी। उनके सुप्रयत्नों से उस युग में एक नए प्रभात का उदय हुआ था एवं भारतीय संस्कृति प्राणवान बन गई थी। वे अपने युग की महान विभूति थे। उनके जीवन और कार्य पर दृष्टिपात करने से पूर्व तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक, कला और साहित्यिक तथा धार्मिक परिस्थितियों को भलीभाँति जानना अति आवश्यक है। आ. जिनदत्तसूरि जी के जीवन का कार्यक्षेत्र
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गुजरात नो प्राचीन इतिहास- डॉ. हरिप्रसाद ग. शास्त्री, पृ. ३०७
वही, पृ. ३०७
वही, पृ. २३९.
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