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युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान अतः पाँच प्रकार के उदुम्बर का सेवन करना स्वास्थ्य और धर्म की दृष्टि से हानिकारक होता है।
चार महाविगइ (विकृति उत्पन्न करनेवाली वस्तुएँ) जिनको अनिवार्य रूप से वर्जित माना गया है -
प्रवचन सारोद्धार' में दस प्रकार की विगइ मानी गई है -- क्षीर-दूध, दही, नवनीत-मक्खन, घृत, तेल, गुड़-शक्कर, मद्य, मधु-शहद, मांस, हिमग- (पकवान)।
ये दश उग्र विकृतियाँ मानी जाती हैं। इनमें से चार महाविगइ- मद्य, मांस, मधु और मक्खन सर्वथा ही अभक्ष्य हैं।
स्मृतियों में कहा है:
इन चारों महाविगइ में अनन्त जीवों की उत्पत्ति प्रतिसमय होती रहती है। जैसी वस्तु उसी रंग के असंख्य जीव निरन्तर उत्पन्न होते रहते हैं। ४२ जिससे मानसिक और शारीरिक दोष और रोग उत्पन्न होते हैं तथा कामवासना उत्तेजित होती है।
मांस :
मांस मानव प्रकृति से सर्वथा विरुद्ध है । मांस तो श्वापद-(सिंह, व्याघ्र आदि)जन्तुओं का भक्ष्य है। उनके दांतों की रचना ही वैसी है। मनुष्य तो सर्वोत्तम प्राणी है, उनके दातों की रचना श्वापद जन्तुओं जैसी नहीं है, उसका भक्ष्य तो अन्न, फल, शाक, सब्जी, मेवा आदि है । मांस खानेवाला व्यक्ति निर्दय राक्षस बन जाता है। अतः त्याज्य है।
___आचार्य मनु ने कहा- जीवों की हिंसा के बिना मांस उपलब्ध नहीं होता, और जीवों का वध कभी भी स्वर्ग प्रदान नहीं करता। अतः मांस भक्षण त्यागना चाहिये। ४३
प्रवचन सारोद्धार-पच्चक्खान द्वार-४, गाथा-२२६, पृ.६५ “मद्ये मांसे मधुनि च नवनीते चक्रतो बही ते । उदयन्ति विपद्यन्ते तद्वर्णास्तत्र जन्तवः ।।" (उद्धृत चैत्यवंदन कुलक-अनुवादिका पू. सज्जनश्रीजी म.सा., पृ.१२१) श्री मनुस्मृति- भाषान्तर कर्ता -शास्त्री शंकर दत्त पार्वती शंकर, अध्याय ५, गाथा ४८, पृ.२१९.
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