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युगप्रधान आ . जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान ८. पार्श्वनाथ मन्त्र गर्भित स्तोत्र
यह प्राकृत भाषा में ३७ पद्यों का स्तोत्र है । पार्श्वनाथ स्तोत्र अप्रकाशित कृति है । मूल कृति भँवरलालजी नाहटा के पास है ।
आचार्य जिनपतिसूरि के शिष्य " श्री पूर्णकलश गणि” की लिखी टीका मिलती है । किन्तु यह कृति पूर्ण प्रमाणों के अभाव के अनुसार संदिग्ध है। श्री अगरचंदजी और श्री भँवरलालजी के अनुसार इसे आचार्य जिनदत्तसूरिजी की कृति माना गया है । २५ डा. आर. एम. शाह के मतानुसार - पार्श्वनाथ पंत्र गर्भित स्तोत्र जिनदत्तसूरि रचित कृति मान में सन्देह प्रतीत होता है।
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है ।
२५.
२६.
इस स्तोत्र में स्तम्भन पार्श्वनाथ भगवान की स्तुति की गयी है । तथा भगवान स्तुति के साथ-साथ मंत्रों का प्रयोग भी किया गया है।
यह स्तोत्र सर्वलाभ और मनोवांछित फल देनेवाला है। अद्यावधि अप्रकाशित
९. चैत्यवंदन कुलक
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चैत्यवंदन कुलक का अपर नाम “सम्यक्त्वाधिरोप प्रकरण" है। यह कुलक प्राकृत भाषा में रचा गया है। इसमें २८ पद्य हैं। कुलक में २ से २७ पद्य तक गाथा छन्द, अन्तिम पद्य में “शार्दूल विक्रीडित छन्द का प्रयोग किया गया है। चैत्यवंदन कुलक के रचनाकाल के विषय में जानकारी उपलब्ध नहीं हैं। इस कुलक पर श्री जिनकुशलसूरिजी दादा गुरुदेव ने वि.सं. १३८३ में बाड़मेर (राजस्थान) में वृत्ति रची थी, जिसकी श्लोक संख्या परिमाण ४४०० हैं । २६
चैत्यवंदन कुलक पर संस्कृत छाया सह हिन्दी अनुवाद हो चुके हैं। २७
२७.
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युगप्रधान जिनदत्तसूरि, अगरचंदजी नाहटा, पृ. ५८, टिप्पण नं. ३.
चैत्यवंदन कुलक- श्री जिनकुशलसूरिजी रचित वृत्ति, व लब्धिनिधान कृत संक्षिप्त टिप्पण सह, जिनदत्तसूरिज्ञान भण्डार, सूरत से प्रकाशित है ।
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चर्चयादि संग्रह - भाषा सह - जिनहरिसागरसूरिजी प्रकाशक- जिनदत्तसूरिजी ज्ञान भण्डार सूरत, पृष्ठ - ५४ से ६३
चैत्यवंदन कुलक टीका हिन्दी अनुवाद, प. पू. प्रवर्तिनी सज्जन श्रीजी म.सा., प्रकाशक- - जिनदत्तसूरि सेवा संघ - कलकत्ता वि.सं. २०४४.
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