________________ (10. शक्ति ही जीवन) मानव जीवन में शक्ति की बहुत आवश्यकता हैं। बिना शक्ति के न लौकिक कार्य सम्पन्न हो सकता है और न आध्यात्मिक साधना की जा सकती हैं। प्रत्येक कार्य को सम्पन्न करने के लिए और उसे सफ़लता की सीमा पर पहुंचाने के लिए शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की शक्ति अपेक्षित हैं। समस्त सफ़लताओं के मूल में एक भी पदार्थ शक्ति-हीन नहीं है। किसी में शक्ति प्रसुप्त रहती है तो किसी में प्रवुद्ध / प्रसुप्त शक्ति को प्रबुद्ध करना ही विज्ञान एवं ज्ञानियों का काम हैं। कोयला एक अचेतन तत्व है। शक्तिहीन प्रतीत होता है पर ज्योहि उसे अग्नि का सम्पर्क मिलता है वह जल उठता है। उस एक ही कोयले में समग्र ग्राम-नगर, वन को जलाने की शक्ति आ जाती है। अवरूद्ध जल में प्रवाह नहीं होता वह प्रवाही न होकर शान्त पड़ा रहता हैं, किन्तु जब बांध टूट जाता है तब वह प्रवाही हीन जल प्रवाहशील बन कर सर्वनाश करने वाल बन जाता हैं। बाढ़ का वेग जिधर निकलेगा हाहाकार मचा देगा। बांध के शान्त जल को देख कर कोई भी व्यक्ति उसकी प्रचण्ड शक्ति की कल्पना नहीं कर सकता / जल के कण-कण में परिव्याप्त विद्युत की शक्ति को कोई नाप नहीं सकता। वैज्ञानिक प्रक्रिया करके जब विद्युत का रूप दिया जाता है तब उसकी महाप्रचण्ड शक्ति का अनुमान लगाना बुद्धि का काम है। पवन जब मन्द-मन्द बहता है तो सबको प्रिय लगता है, सुखद लगता है। पर जब वही पवन प्रचण्ड आंधी तूफ़ान का स्वरूप ग्रहण कर लेता है तव दुनियां में हाहाकार मचा देता है। ठीक इसी प्रकारी मनुष्य की साधारण बुद्धि का जब किसी तेजस्वी प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति से सम्पर्क होता है तब उसके जीवन में चमत्कार उत्पन्न हो जाता भगवान राम को जब चौदह वर्ष का वनवास मिला और जब वह Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org