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________________ 85 अनन्त शक्ति होती है। मंदिर में प्रवेश किया प्रवेश करते ही सामने भव्य आदीश्वर भगवान की प्रतिमा को देखा मन में विचार आया आज दिन तक ऐसा आदीश्वर भगवान का मंदिर नहीं देखा आगे बढ़ रहा है विचारों में तरतमता आने लगी। रंगमण्डप में पहुंच गया सामने मूल गम्मारें में देखा मंत्री पुष्प पूजा कर रहा हैं / अष्ट प्रकार की पूजा होती हैं। प्रत्येक पूजा का अपना रहस्य होता है। अभिषेक जिन मूर्ति का करो तो कर्म मेल आपके धुलते है। चन्दन पूजा करो तो उपशम भाव प्राप्त होता है / पुष्प पूजा करो तो आपमें गुणों की सुवास उत्पन्न होती है। धूप पूजा करो तो वासना की दुर्गन्ध दूर होती है। आरती उतारों तो अन्तर में उजवाला होता है। अक्षत पूजा करो तो अक्षय पद प्राप्त होता है। नैवैद्य पूजा करो तो अणाहारी पद प्राप्त होता है। फल पूजा करो तो मोक्ष रूपी फल की प्राप्ति होती है। मन-वचन-काया, सोंपो तो तीनों ही आपके निर्मल बनते हैं। ध्यान प्रभु का धरों तो चित्त प्रसन्न होता हैं। इतनी गजब की शक्ति परमात्मा में होती है। मंत्री पुष्प पूजा कर रहा है यह देख राजा के विचारों में परिवर्तन हो गया क्या लेकर आया था कि आज मैं मंत्री का सिर धड़ से अलग कर दूंगा। हिंसा का भाव था। परन्तु यहां आकर सब कुछ गायब / भक्ति में इतनी शक्ति होती हैं। पेथड़मंत्री की भक्ति तथा जिनालय के परमाणुओं ने राजा के विचारों में परिवर्तन ला दिया। मंत्री को एक व्यक्ति पुष्प देता जा रहा था और मंत्री भगवान की पुष्पों से आंगी रचा रहा था / राजा के भाव वर्द्धमान हुए उस व्यक्ति को उठा स्वयं बैठ गया। पुष्प देना चालू किया। क्रम बदल गया। राजा को देख लिया फिर भी पूजा में संलग्न / द्रव्य पूजा से अब भाव पूजा में प्रवेश किया। द्रव्य पूजा भावों को लाने के लिए अर्थात् भावों तो मज़बूत बनाने के लिए है। जैसा कि देव चन्द्र जी महाराज ने बारहवें वासुपूज्य स्वामी के स्तवन में कहते हैं कि - Jain Education Internation Private & Personal [email protected]
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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