________________ समान है, बढ़ती ही जायेगी। आपने अभी खाना खाया, कुछ समय पश्चात् पुनः भूख लग जाती है। अभी अभी अच्छे अच्छे साबुन से स्नान किया, सेन्ट आदि पदार्थो का विलेपन शरीर पर किया थोड़े समय बाद वापिस बदबू शरीर से आने लग जाती है। वीतराग प्रभु के दर्शन करने के पश्चात् भौतिक सुख की तमन्ना नहीं रहेगी। पकड़ लो वीतराग जिनेश्वर देव के चरण / जीवन सार्थक हो जायेगा, किसी प्रकार का भय जीवन में नहीं रहेगा। निर्भीकता आ जायेगी। पेथड़कुमार के जीवन में भी प्रभु की भक्ति से निर्भीकता आ गई थी। पेथड़कुमार राजा का प्रमुख मंत्री था। राजा उसकी सलाह से ही सारे राज्य कार्य करता था। इससे दूसरे मंत्री पेथड़ मंत्री से चिढ़ने लगे। सोचने लगे किसी भी तरह इसको राजा की आंखो से नीचे गिराना है। राजा इसी को मान-सम्मान देते हैं। हमको कुछ पूछते ही नहीं है। अवसर की राह देखने लगे कि किस प्रकार इसे नीचे गिराया जाये। ईर्ष्या प्रवृत्ति ऐसी होती हैं। भाई-भाई को जुदा कर देती है। पेथड़ मंत्री प्रात: ग्यारह बजे आते है और साम को पांच बजते ही रवाना हो जाते हैं / हम तो सुबह जल्दी आते हैं और देरी से जाते हैं। उन्हें मालुम था की इससे पूर्व पेथड़ मंत्री आ ही नहीं सकता। इसलिए राजा के कान भरने शुरू कर दिये / राजन् ! आप पेथड़ मंत्री को इतना मान सम्मान देते हैं परन्तु वह आपकी आज्ञा का पालन नहीं कर सकता। इसकी परीक्षा के लिए आप उसे एक दिन सुबह आठ बजे राज्य सभा में बुलाओं वह आता है या नहीं आपको पता चल जायेगा आपकी कितनी आज्ञा का पालन करता है। राजा तो कान के कच्चे होते है एक पक्ष की बात को सुनकर आवेश आ गया कि पेथड़ मंत्री ऐसा है मेरी आज्ञा को नहीं मानता / प्रातः काल होते ही सैनिकों को पेथड़ मंत्री के घर भेज दिया और कहलाया कि अभी-अभी पेथड़कुमार को राजा साहब ने बुलाया है। सैनिक समाचार लेकर राजा की आज्ञा से पहुंच गये मंत्री जी के घर पर / मंत्री को आवाज लगायी मंत्राणी बाहर आई कहां क्या काम Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org