________________ शान्ति के परमाणु आपके पास आकर एकत्रित हो गये हैं। आपका निर्माण ही शान्ति के परमाणुओं से हुआ है। तो मुझे मिलते भी कहां? पुनरपि जननं, पुनरपि मरणम् पुनरपि जननी- जठरे शयनम् आज दिन तक खूब भटका / बार-बार जन्मा, बार-बार मृत्यु को प्राप्त हुआ, बार-बार माता के गर्भ में रहा। आलम्बन लिया नहीं वीतराग प्रभु का। फिर शान्ति कहां से मिलेगी। संसारी प्राणीओं का आलम्बन लिया मांग की, परन्तु उसके पास है क्या-जो देगें / पहुंच जाओं वीतराग प्रभु के पास मांगनी करोगे तो कुछ न कुछ वस्तु की प्राप्ति अवश्य होगी। जिसने वीतराग प्रभु को पकड़ा नहीं वह भटक गये। सावन के महीने में झूले झूलते हैं। झूला झूलने वाले झूले की रस्सी को मज़बूती से पकड़ता है फिर भले वह कितने ही ज़ोर-ज़ोर से झोटे खाये पड़ेगा नहीं। अगर मज़बूती से रस्सी को पकड़ेगा नहीं तो एक ही झोटे में खलास / हड्डी चकनाचूर हो जायेगी। संसार में रहो परन्तु वीतराग की वाणी रूपी रस्सी को अच्छी तरह से पकड़ लो मज़बूती के साथ / आओं भूलो मेरे चेतन, आतम भवन में, आतम भवन में चेतन अपने भवन में..-आओ.... काहे का वहां वृक्ष खड़ा है। काहे की झूल पड़ी वामे....कांहे....आओ.... सम्यक् दर्शन वृक्ष खड़ा है, ज्ञान की झूल पड़ी वामे.....,ज्ञान....आओं.. वीतराग तथा ज्ञान रूपी वाणी का आलम्बन मज़बूती के साथ पकड़ लिया तो और कहीं भटकने की जरूरत नहीं रहती। लेकिन आज दिन तक कामना-वासना की तमन्ना है। तृप्ति नहीं होगी, यह तो आग में घी डालने के Jain Education Internationerivate & Personal Usevamily.jainelibrary.org