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________________ विद्यमान है। आत्मा के निकल जाने पर शरीर का कोई महत्व नहीं रहता बल्कि उसे जल्दी से जल्दी शमशान ले जाने की तैयारियां करते हैं। चेतन शक्ति तो शाश्वत है, जड़ पदार्थ शाश्वत नहीं होते उनका तो एक न एक दिन अंत अवश्य होता है। चेतन शक्ति को समझने के लिए धर्म का आश्रय लेना पड़ता है। लेकिन आज का मानव धर्म की सत्ता को स्वीकार नहीं करता है / क्योंकि वह दिखाई नहीं देता है। भौतिक पदार्थ दिखाई देते हैं इसलिए उसकी सत्ता को मान लिया जाता है। धर्म बीज के समान होता है जिसे बो देने पर दिखाई नहीं देता लेकिन जब वह वृक्ष का रूप धारण कर लेता है तो अत्यधिक लाभप्रद होता हैं। "बीज बीज ही नहीं, बीज में तरूवर भी है। मनुष्य मनुष्य ही नहीं, उसमें परमात्म भी है।" बीज वृक्ष का रूप धारण करके राहगीरों को शीतल छाया प्रदान करता है, भूखों को फल देता है आदि अनेक प्रकार की चीज़े देता है। ठीक इसी प्रकार धर्म भी दिखाई नहीं देता है लेकिन उसका शुद्ध फल अवश्य ही समय आने पर दृष्टिगोचर होता हैं / सुख-शांति चाहिए, परन्तु मिलेगी कहां से,जीवन में धर्म नहीं, वीतराग का आश्रय नहीं / शान्ति का जो केन्द्र होगा वहीं शांति मिलेगी। संसारी प्राणियों के पास शान्ति नहीं। पहुंच जाओं वीतराग प्रभु के चरणों में हो जाओं समर्पण, शान्ति मिलेगी। यै शान्तरागरुचिभिः परमाणुभिस्त्वं निर्मापितस्त्रिभुवनैक - ललामभूत। तावन्त एव खलु तेऽप्यणवः पृथिव्यां यत्ते समानमपरं नहि रूपमस्ति / हे प्रभु आपका निर्माण शान्ति के परमाणुओं से हुआ हैं। जगहजगह मैं गया परन्तु शान्ति के परमाणु मिले नहीं, क्योंकि बचे ही नहीं ! सारे Jain Education InternationBrivate & Personal Usevamly.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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