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________________ ९.जिनेश्वर भक्ति आत्मा से महात्मा, महात्मा से परमात्मा, जन से जैन, जैन से जिन आगे बढ़ना है। आत्मा अनन्त शक्ति का पुंज है / ठाणांग सूत्र में आया, समवायांग सूत्र में भी आया “ऐगे आया ॥"आत्मा एक आया। एक आत्मा अनेकों के बीच में आ जाता है। मकड़ी जाल बनाती है और स्वयं उसी में एक दिन मर जाती हैं। जड़ को देखते चले आ रहे हैं। आत्मा की शक्ति को कभी देखा? सुख-दुःख, पुण्य-पाप अनुभव करने की चैतन्य शक्ति जिसमें विद्यमान हो उसी का नाम आत्मा है / ठीक उसके विपरीत एक दूसरी शक्ति हैं जो प्रतिपल, प्रतिक्षण व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करती रही है वह है, जड़ पदार्थ / जड़ में सुख-दुःख, पुण्य पाप का अनुभव करने की क्षमता नहीं होती है। आज का युग भौतिकवाद का युग है जिसके अन्तर्गत मानव चेतन से हट कर जड़ पदार्थो की ओर आकर्षित होता जा रहा है। वह उनमें इनता लिप्त हो जाता है कि उसे भान ही नहीं रहता कि मैं क्या कर रहा हूँ, क्या करने जा रहा हूँ तथा मुझें इसका क्या फल भोगना पड़ेगा। अपने मूल स्वभाव को भूलता जा रहा है। जीव का वास्तविक स्वभाव ज्ञानमय, दर्शनमय, चारित्रमय है। ज्ञान के बिना जीव 'स्व'स्वरूप की प्राप्ति नहीं कर सकता | सच्चे सुख की प्राप्ति 'स्व'स्वरूप में ही है। आत्मा का स्वभाव तो अजर अमर है। जब कि जड़ का स्वभाव तो सड़न, गलन, विध्वंस है। जड़ का महत्व तो तभी तक है जब तक उसमें चेतन शक्ति विद्यमान रहती है। जिस प्रकार बॉक्स की उपयोगिता, महत्ता तभी तक है जब तक उसमें हीरे, जवाहरात भरे रहते हैं। इनके निकल जाने पर खाली बॉक्स में चाहे बढ़िया ताला लगा दिया जाये फिर भी उसका महत्व नहीं रहता है ।इसी प्रकार यह शरीर भी एक बॉक्स के समान है, इसमे आत्मा रूपी जवाहरात है। तभी तक इसका महत्व है जब तक इसमे आत्मा Jain Education InternationBrivate & Personal Usevamily.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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