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________________ मंत्री राजा को लेकर गिरनार पर्वत पर पहुंच गया। सज्जन मंत्री का मन प्रसन्न हो गया। एक भाव से नमन करता है। राजा भी देव विमान जैसे मंदिर को देख कर आश्चर्य चकित हो गया। साथ में गगन चुम्बी ध्वजा को देखा जो लहरा लही थी। शिखर कितने ऊंचे ऊंचे है। राजा मंत्र मुग्ध बन गया। नेमिनाथ भगवान की प्रतिमा को देखा तो आत्मविभोर बन गया। सज्जन मंत्री ने नेमिनाथ भगवान का परिचय बताया। ये तीर्थंकर परमात्मा है, ब्रह्मचारी है। यह भोगी बनने आये थे और योगी बन गये चले गये थे ! पशुओं का निमित्त मिला / दया से परिपूर्ण जीवन था / पशुओं की करुण पुकार को सुन कर निकल पड़े और यहां आकर साधना में लीन हो गये। निर्वाण मोक्ष यही से हुआ है। राजा बहुत ही खुश था। कहने लगा मंत्री मुझें यह सब नहीं मालुम था। मैं तो बहुत बुरा करने वाला था, तुझे पायमाल कर देता / परन्तु यहां की यात्रा करा कर मुझे पावन कर दिया। विचारों की श्रृंखला बदल गयी। कहने लगा सज्जन ! तेरा धर्म जयवंता हो ! तीर्थ को स्पर्श कर मैं बहुत प्रसन्न हूँ। परम शान्ति मुझे मिली है। आज से तेरा धर्म मैं स्वीकार करता हूँ। कहने का तात्पर्य है कि अशुद्ध निमित्तों से आत्मा विभावदशा में गोता खाती है / और शुद्ध निमित्त मिलने पर स्व स्वभाव में रमण करने लग जाती है। परमाणुओं में अनन्त शक्ति होती है। गिरनार पर्वत के परमाणु शुद्ध इसलिए राजा के विचारों में परिवर्तन आ गया। अशुद्ध से शुद्ध की ओर दिशा परिवर्तन हो गई ! आज दिन हमें मार्ग नहीं मिला। पांच इन्द्रियों के 23 विषय में आशक्ति है, मोह है। बन्धन होता जाता है कर्मो का। कर्मो के बन्ध से मुक्ति कैसे होगी। मुक्ति के लिए तो सुदेव, सुगुरु, सुधर्म का आलम्बन लेना होगा। अशुद्ध निमित्तों से शुद्ध निमित्तो की ओर आना होगा। शुद्ध निमित्तो से शुभ भाव जागृत होते हैं। शुभ भाव शुभ मार्ग (मोक्ष)की ओर आकर्षित करते है। *** Jain Education InternationBrivate & Personal Usevamily.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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