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________________ सहयोगी बनेगा। इस प्रकार के विचार दोंनो मित्रों के मन में आने लगे ! परमाणु में अनन्त शक्ति है। पूर्व में रहे शुभ परमाणु मित्रों के शुभ चिन्तन का विषय बना / शुभ विचार आत्मोन्मुखी बनाते हैं। लड़को ने देखा वहां और यहां के विचारों में कितना अन्तर / कल अशुभ आज शुभ परमाणु-परमाणु में कितना अन्तर हैं। शुद्ध निमित्तों के आलम्बन के लिए ही ज्ञानियों ने मंदिर, उपासरो का निर्माण करवाया है। जहां आवश्यक हो वहां मंदिर अवश्य बनवाना चाहिए। और जहां मंदिर जीर्ण-शीर्ण हो गये हो, गिरने की तैयारी हो तो जीर्णोद्धार अवश्य करवाना चाहिए / मन्दिर आलम्बन भूत होते है। सुदेव, सुगरु, सुधर्म का पालन होने लगता है। जैसे पाटन का राजा सिद्धराज उनके सज्जन नाम का मंत्री था। सज्जन मंत्री एक बार गिरनार की यात्रा के लिए गया / मंदिरो का अवलोकन किया। मन में जीर्णोद्धार का विचार आया। मंदिरों की स्थिति बहुत नाजुक थी। करोड़ो का धन लगाया जाये जब जाकर जीर्णोद्धार हो सकता है / मंत्री जितने भी हुए है वह सब बनिए ही होते थे। बनियों के पास बुद्धि का वैभव होता था। विशाल मंदिर भी जैनों के ही होते थे। शासन और राज्य की सुरक्षा मंत्रियों के हाथ में होती थी। मंत्रणा करे वह मंत्री ! मंत्रणा कैसी ? हेय उपादेय वाली। हेय यानी छोड़ने वाली उपादेय यानि ग्रहण करने लायक मंत्रणा ! सज्जन मंत्री के रोम-रोम में भक्ति भरी हुई थी। जिनशासन के प्रति अटूट श्रद्धा थी। शासन का रागी था। राज्य कार्य करते हुए भी धर्म की रक्षा। सोचा इतना धन कहां से उपलब्ध होगा। चिन्तन चल पड़ा। भाग्य से उस वर्ष राज्य में वर्षा अच्छी हुई। चारों तरफ हरियाली-हरियाली छा गई। फसल भी बहुत अच्छी हुई। चारों तरफ शान्ति का वातावरण था। टैक्स लेने का समय आ गया। फसल के हिसाब से टैक्स भी अच्छा मिलने वाला था। मन में विचार आया कि मेरे पास तो इतना धन है नहीं मैं अभी किसानों के टैक्स में से कुछ Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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