________________ गया। “किसे कहूं मैं अपना" यह प्रश्न शाश्वत सत्य के रूप में आकर उपस्थित हो गया। जो साध्वी जी गुरु-पद पर थी उनको जब यह ज्ञान हुआ कि प्रभंजना ने ध्यानारूढ स्थिति में क्षपक श्रेणी आरोहण कर अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत चारित्र रूप केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया है। उन्हीं क्षणों समस्त साध्वी मण्डल के साथ भावपूर्ण प्रभंजना के चरणों में अनंत बार प्रणाम किया। इधर प्रभंजना के साथ में आई हुई एक हज़ार सखियां एवं स्वयंवर मण्डप में आये हुए राजकुमार जो प्रतिक्षण प्रभंजना की प्रतीक्षा में समय व्यतीत कर रहे थे उन सभी को विद्युतवेग की तरह प्रभंजना के शाश्वत सत्य प्राप्ति की सूचना मिली / परिणाम स्वरूप जनमानस प्रभंजना के चरणों में उल्लसित भावों से प्रणाम करने लगे। प्रभंजना उन सभी को सम्बोधित करती हुई आत्म स्वरूप को समझा रही थी / “किसे कहूँ मैं अपना'। इस वाक्य ने रहस्य उद्घाटन कर प्रत्येक आत्मा को आत्मविकास की ओर उन्मुख किया। केवलज्ञान में झलकती वाणी को श्रवण कर सभीने इस सत्य को स्वीकार कर लिया कि “किसे कहूँ मैं अपना" / समस्त जगत है सपना, फिर किस लिए खपना, अरिहंत नाम है जपना, केवल आत्म स्मरण में लगना। *** Jain Education Internationarivate & Personal Usevanty jainelibrary.org Jain Education Internation Private & Personal Usevomly.jainelibrary.org