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________________ 73 महाराज लड़कियों के जीवन में विवाह एक सर्वोपरि मोड़ है। अतः! उस लक्ष्य की पूर्ति हेतु हम पतिवरण करने के लिए स्वयंवर मण्डप में जा रही हैं / उसी समय साध्वी जी ने प्रभंजना की आकृति का अध्ययन किया पात्रता है पानी डाल दिया जाये तो अवश्य उगेगा। प्रभंजना! तुम जिसे पतिरूप में स्वीकार करने जा रही हो उसके साथ पूर्व का कोई सम्बन्ध है। प्रभंजना किं कर्त्तव्य - विमूढ़ हो गई। स्थिति का परिप्रेक्षण कर लिया क्योंकि जिन दर्शन का अध्ययन किया हुआ था। सैद्धान्तिक विषय का ज्ञान था। उसी समय आत्म निरीक्षण में उतर गई। सोचने लगी अब इस प्रश्न का उत्तर में क्या दूँ। किसी आत्मा का किसी के साथ कोई सम्बंध नहीं है। अनंत काल की अपेक्षा से प्रत्येक आत्मा के साथ अनेक सम्बंध स्थापित किये हैं। परन्तु यह सम्बन्ध वास्तविक नहीं है। आज मैं गुरुवर्या श्री के प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ हूँ। क्योंकि हो सकता है जिसे मैं आज पति रूप में स्वीकार करने जा रही हूँ वह अनंत भवों की अपेक्षा से कभी मित्र रहा हो, कभी शत्रु रहा हो, कभी पुत्र, कभी पिता, कभी भाई, कभी बहन, अतः स्थायी सम्बंध तो कुछ कह ही नहीं सकती / असत्य बोल नहीं सकती अर्थात् यह प्रश्न उसके चिन्तन का विषय बन गया। पर्दा फटने की तैयारी हो गई। पर्दा तीन प्रकार का होता है। लढ्ढा का पर्दा, भीत का पर्दा, मलमल का पर्दा / प्रभंजना का कर्म रूपी पर्दा पतला होता होता मलमल का बन गया। कुछ ही देर में अज्ञान का अति जीर्ण श्वेत पर्दा इतनी जल्दी फटा कि मेरा कोई नहीं मैं किसी की नहीं। दौड़ते-दौड़ते पहुंच गई क्षपक श्रेणी चढ़ गई। मल-मल का पर्दा था वह भी फट गया। आज दिन तक सब प्रकार का सर्जन किया अब विसर्जन में लग गई। इस प्रकार प्रभंजना ने गहरी डुबकी लगा ली। और वही खड़े-खड़े सर्वज्ञाता दृष्टा की साक्षात मूर्ति बन केवल दर्शन और केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया। वरमाला हाथ की हाथ में रह गई और मोक्ष रूपी माला का वरण कर लिया। स्वयंवर मण्डप दीक्षा मण्डप में परिवर्तित हो Jain Education InternationBrivate & Personal Usevamily.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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